500 साल का ऐतिहासिक नगर, अब 25 साल से अपने अस्तित्व के लिए लड़ता नजर आ रहा है


गौरव राज तेजस्वी की कलम से – राष्ट्रवाद के विवेक की दृष्टि से

गोहद, मध्यप्रदेश का वह ऐतिहासिक नगर, जिसकी मिट्टी ने राणा हम्मीर, गोकुलसिंह और बलिदानी क्षत्रियों को जन्म दिया — अब विकास की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। जहाँ कभी इतिहास दीवारों में नहीं, जनमानस की चेतना में साँस लेता था, वहाँ आज शून्यता, पलायन और उपेक्षा की आवाज गूंजती है। 500 वर्षों की ऐतिहासिकता के बावजूद, पिछले 25 सालों की राजनीतिक सत्ता ने गोहद से केवल योजनाएं नहीं छीनीं — उसकी आत्मा को भी धीरे-धीरे कुचल दिया।

सत्ता में विचारधारा आई, पर विचार मरते चले गए

जब राष्ट्रवादी संगठन सत्ता में आए, तो जनता ने सोचा कि संस्कार, संस्कृति और शिक्षा को प्राथमिकता मिलेगी। लेकिन गोहद में 1990 के दशक में स्थापित हुए 8 सरस्वती शिशु मंदिरों में से अब 4 ही सक्रिय हैं, और वे भी बिना स्थायी भवन, बिना वेतनभोगी शिक्षक और बिना किसी सरकारी संरक्षण के किसी तरह साँस ले रहे हैं।
गोहद की कुल जनसंख्या (2021 अनुमान): 85,000
बाल जनसंख्या (6-14 आयु वर्ग): लगभग 18,000

इतनी बड़ी बाल आबादी के लिए मात्र 4 संस्कृति-आधारित विद्यालय — वह भी जर्जर दशा में?

यह संस्थागत विफलता नहीं, विचारधारा के पतन की शुरुआत है।
सवाल यह नहीं कि शिशु मंदिर क्यों बंद हो रहे हैं , सवाल यह है कि “जिस राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता मिली, उसी राष्ट्रवाद की जड़ें अब क्यों सूख रही हैं?”

सरस्वती शिशु मंदिर: राष्ट्रवाद के प्रतीक या सत्ता द्वारा परित्यक्त?

सरस्वती शिशु मंदिर कोई सामान्य विद्यालय नहीं होते। वे भारतीय संस्कारों की पाठशाला होते हैं। जहाँ ‘भारत माता की जय’ केवल एक उद्घोष नहीं, जीवन शैली होती है।

लेकिन आज जब गोहद में:

शिक्षक 6 महीने से वेतन नहीं पा रहे,

छात्र फर्श पर बैठने को मजबूर हैं,

और भवन किराए पर चल रहे हैं,


तो यह प्रश्न उठता है — क्या सत्ता राष्ट्रवाद से मुंह मोड़ चुकी है? यदि राष्ट्रवाद सिर्फ मंचीय नारा रह गया है, तो आने वाली पीढ़ियाँ उसे इतिहास की गलियों में खोया हुआ पाएँगी।”

मास्टर प्लान — कागज़ पर ‘जनहित’, ज़मीन पर ‘जनप्रतिनिधि हित’

2014 में तैयार हुआ गोहद का मास्टर प्लान —
जिसे “जन कल्याण की आधारशिला” बताया गया था —
आज 2025 में, 10 वर्षों बाद भी, कागज़ों तक ही सीमित है।  मास्टर प्लान में प्रस्तावित थे:

6 नए प्राथमिक विद्यालय

2 शासकीय अस्पताल

5 सामुदायिक जलसंस्थान


लेकिन जमीन पर:

विद्यालयों के लिए जमीन चिन्हित नहीं हुई। अस्पताल की फाइलें ‘पीडब्ल्यूडी’ में धूल खा रही हैंऔर 5 में से 3 जलसंस्थान निजी कब्जों में तब्दील हो चुके हैं,  मास्टर प्लान अब ‘जनहित’ नहीं,प्लॉट हित’ और ‘गली-प्रभुत्व’ की राजनीति बन चुका है।

VIP मंत्री बनाम स्थानीय सेवक — गोहद को अब विकल्प नहीं, बदलाव चाहिए

हर चुनाव में गोहद को VIP उम्मीदवार दिया जाता है, जो गोहद को केवल एक राजनीतिक सीढ़ी मानता है। जीत के बाद उनका वाक्य होता है।“मैं केवल गोहद का नहीं, पूरे प्रदेश का मंत्री हूँ।”इस एक वाक्य से ही शुरू होता है — गोहद की उपेक्षा का एक और कार्यकाल।

अब गोहद पूछता है:
“हमें बड़ा नाम नहीं, बड़ा काम चाहिए।
हमें मंत्री नहीं, मोहल्ले में खड़ा रहने वाला सेवक चाहिए।”


पानी की बाल्टी से बड़ी कोई पोल नहीं होती

सुबह 5 बजे की गोहद की तस्वीर:

महिलाएं हैंडपंप पर लाइन में

बाल्टियों की कतार

और मन में लाचारी


25 वर्षों में न पानी बदला, न हालात।
नलजल योजना के 6.12 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन:

18% ही कार्य पूर्ण हुआ

42% पाइपलाइन निर्माण अधूरा

2 योजनाएं भ्रष्टाचार की जांच में फंसी


असल में बही तो सिर्फ “जुमलों की नदी” थी,
जिसका स्रोत मंच, माइक और घोषणा तक सीमित रहा।

पलायन की नीति — सुनियोजित और निष्ठुर

गोहद से पिछले 15 वर्षों में:

500 से अधिक परिवार पलायन कर चुके हैं

300+ दुकानें बंद हुईं

मंडी, कचहरी, थाना, बैंक — सब धीरे-धीरे या तो बंद हुए या हाशिए पर पहुँच, अब बारी अस्पतालों और स्कूलों की है।
यह क्रम मात्र संयोग नहीं — यह नीति है।
गोहद को ‘वोट बैंक’ बनाए रखने के लिए,
‘विकास विहीनता’ की रणनीति अपनाई गई।

अब गोहद मौन नहीं रहेगा

गोहद अब इतिहास नहीं,
वर्तमान को खुद गढ़ने को तैयार है।

अब वह सत्ता से पूछेगा:

सरस्वती शिशु मंदिर क्यों उपेक्षित हैं?

मास्टर प्लान क्यों लागू नहीं हुआ?

नलजल योजना के करोड़ों कहाँ गए?

हर साल VIP, पर हर साल उपेक्षा क्यों?

सत्ता को चेतावनी, जनता को प्रतिज्ञा

> “राष्ट्रवाद नारों से नहीं, उसके मूल स्तंभों के संरक्षण से जीवित रहता है।” यदि सरस्वती शिशु मंदिर बंद हो रहे हैं, तो इसका अर्थ है —
या तो राष्ट्रवाद थक चुका है, या फिर सत्ता उसे बिस्तर पर डाल चुकी है।

अब गोहद कहता है  “हमें सत्ता नहीं, संस्कार चाहिए। हमें राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति चाहिए।
हमें प्रतिनिधि नहीं, राष्ट्रनिष्ठ सेवक चाहिए।”

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