सुलखान सिंह भदौरिया बने यूपी के नए डीजीपी, किसी का आगे न झुकने वाले ips कैसे बने

लखनऊ । सुलखान सिंह भदौरिया के बारे जानकर हैरानी होगी की इनकी रीड की हड्डी अभी सही सलामत है क्योंकी ये उन चुनिदा अफसरों में से जो किसी राजनेता के पैर नही छुते एवं न कभी झुकते है

योगी आदित्यनाथ ने 36 साल की नौकरी में लगे और सिर्फ 3 कमरों का घर बना पाने वाले सुलखान सिंह को उ.प्र का DGP बना दिया है , यूपी के नए डीजीपी सुलखान सिंह ने शनिवार को कार्यभार संभाल लिया है। आखिर 36 साल की इतनी लम्बी पुलिस की नौकरी में सुलखान सिंह के पास सिर्फ 3 कमरों का घर कैसे है ?

आखिर सुलखान सिंह भदौरिया है कौन ?


सुलखान सिंह भदौरिया ने iit Roorkee से इंजीनियरिंग की डिग्री हांसिल की फिर FII (foreign institutional investor) की फिर सिविल सर्विस की तैयारी की तो भारतीय पुलिस में चुने गये वर्ष 1980 के बैच में ट्रेनिग के बाद 1983 में इनकी नौकरी पक्की हो गयी , तब से ले कर आज तक उन्होंने कई जिमेदारी संभाली है, वर्ष 2001 में वो लखनऊ के DIG बनाये गये इस दौरान उन्होंने कई भ्रष्ट पुलिस अफसर का तवादला करवा कर वो सुर्खियों में रहे


SBI से लोन लिया घर के लिए

वैसे एक छोटा सा सरकारी कर्मचारी अरबों की दौलत बना लेता है वही उ प्र में ये इतने बड़े अधिकारी होने के बाद भी  3 कमरों के घर बनाने के लिए sbi बैंक से लोन ले रखा है, लखनऊ के अलकनंदा अपार्टमेंट में इनका माकन है गृह जनपद बांधा में  महज 2.5 एकड़ जमीन है, बतौर आईपीएस इनकी नौकरी चतीस साल की है पर इन पर इतनी ही सम्पति है ,

IAS , IPS  की बात छोडिये आज के ज़माने में एक छोटा सा क्लर्क जायदाद खड़ी करता है वो भी करोडों अरबों की और सुलखान सिंह भदौरिया जैसा अफसर जिसके पास अभी लोन का माकन है ये अफसर देश के लिए मिशाल सकते है , कल्याण सिंह के जामने मे अगर पुलिस का इकबाल बुलंद हुआ तो तो उस वक्त के DGP  कुर्सी प्रकाश सिंह जैसे तेजतर्रार और ईमानदार अफसर के हाथ में थी। जो जिलों और थानों की नीलामी नहीं लगाते थे। आज सुलखान सिंह के हाथ में यूपी पुलिस की कमान है। उम्मीद है कि अब थाने नहीं बिकेंगे। जैसा कि सपा सरकार में खबरें आती थीं। दारोगाओं को योग्यता नहीं बल्कि माल कमाकर देने की योग्यता से थाने मिलते थे।



सुलखान सिंह की ईमानदारी ही अब तक उनकी करियर की राह में रोड़ा बनी रही। अगर 2007 के बसपा राज में सुलखान सिंह मुलायम के समय यूपी पुलिस भर्ती घोटाले की पोल न खोलते तो अब तक कब के डीजीपी बन चुके होते। भला सोचिए, यूपी के  आइपीएस अफसरों की सीनियारिटी लिस्ट में नंबर 1 पर नाम है। मगर अखिलेश यादव के राज में उनसे आठ सीढ़ी नीचे बैठे जावीद अहमद को डीजीपी की कुर्सी मिल गई। जावीद अहमद भी काबिल अफसर माने जाते रहे हैं मगर ऊपर के सात अफसरों को नजरअंदाज कर डीजीपी पद पर बैठाना सरकार की विशेष रुचि की तरफ इशारा करता है। जब 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो भर्ती घोटाले की जांच करने की कीमत चुकानी पड़ी। आम तौर पर उन्नाव के जिस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में डीआइजी स्तर के अफसर की तैनाती होती थी, वहां सुलखान सिंह को तब भेजा गया, जब वह एडीजी रैंक के अफसर थे। यहां काम करते हुए 10 अप्रैल 2015 को प्रमोशन पाकर डीजी मिले। जिसके बाद डीजी ट्रेनिंग की कुर्सी मिली। भले ही अफसर इस पद को अपने लिए सजा मानते हों मगर सुलखान सिंह ने ट्रेनिंग के तौर-तरीकों को सुधारने में खास भूमिका निभाई। यानी जो भी जिम्मेदारी सरकार ने दी, उससे हरसंभव  न्याय करने की कोशिश की।

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