आरक्षण रेल के डिब्बे जैसा हो गया है, सुप्रीम कोर्ट जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी ने छेड़ी नई बहस

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण से जुड़े स्थानीय निकाय चुनावों के मामले की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि भारत में आरक्षण की व्यवस्था अब “रेलवे के डिब्बे” जैसी हो गई है—जहां जो लोग एक बार अंदर आ गए, वे दूसरों को जगह नहीं देना चाहते। उनकी यह टिप्पणी सामाजिक न्याय और आरक्षण के वितरण से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों की ओर इशारा करती है।
महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमारे देश में आरक्षण का खेल अब रेलवे जैसा हो गया है। जो लोग डिब्बे में चढ़ गए हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और चढ़े। इस टिप्पणी के माध्यम से उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण का वास्तविक उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े तबकों को आगे लाना था, लेकिन अब इसका लाभ सीमित परिवारों और वर्गों तक सिमट गया है।
जस्टिस सूर्यकांत ने सरकारों को सलाह दी कि वे आरक्षण के दायरे को व्यापक बनाएं और उन वर्गों की पहचान करें जो अब भी वंचित हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण को कुछ प्रभावशाली वर्गों तक सीमित रखने से असली जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंच पाता।
यह टिप्पणी भारतीय समाज में आरक्षण की वर्तमान स्थिति पर एक गंभीर चिंतन प्रस्तुत करती है। जस्टिस सूर्यकांत का उद्देश्य यह बताना था कि आरक्षण नीतियों में समावेशिता जरूरी है, ताकि हर वह व्यक्ति, जो वास्तव में सामाजिक या आर्थिक रूप से पिछड़ा है, उसे न्याय मिल सके।



