आरक्षित वर्ग के नेतृत्त्वकर्त्ताओं से मेरी अपील-आइए,दोनों वर्ग बैठकर एक न्यायसंगत हल निकालें और एक मिसाल पेश करें

इंजी सुधीर नायक,अध्यक्ष
मंत्रालय सेवा अधिकारी/कर्मचारी संघ

स्टुडेंट लाइफ से ही एक शब्द सुनता आ रहा हूं-ओपन सीक्रेट
मैं सोचता था कि यह कैसा शब्द है? जब ओपन है तो फिर सीक्रेट कैसे?और यदि सीक्रेट है तो फिर ओपन कैसे?
अब जाकर इस शब्द का अर्थ समझ में आया है।मध्यप्रदेश के पदोन्नति वाले मामले में ओपन सीक्रेट प्रत्यक्ष देखने मिल रहा है।मुझे समझ में नहीं आता कि मध्यप्रदेश शासन को अपने ही कर्मचारियों का डेटा सीलबंद लिफाफे में देने की जरूरत क्यों आन पड़ी? ये कोई राष्ट्रीय सुरक्षा,कानून व्यवस्था,सार्वजनिक शांति से जुड़ा हुआ मसला तो है नहीं।शासन के सभी विभागों की वरिष्ठता सूचियां सरकारी बेव साइटों पर अपलोड हैं।वे पब्लिक डोमेन में हैं।वरिष्ठता सूचियों में कर्मचारी की कैटेगरी सीधी भर्ती से आया है अथवा पदोन्नति से-ये सारी डिटेल रहती है।कोई भी आम नागरिक थोड़ी सी मेहनत से सारी वरिष्ठता सूचियां देख सकता है।उच्च पदों पर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों का प्रतिशत लगभग शत प्रतिशत हो जाने संबंधी समाचार पचासों बार समाचार पत्रों में छप चुके हैं।यह कोई लुकी छुपी हुई बात नहीं है।मंत्रालय में अवर सचिव के 65 पदों में से 58 पदों पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी थे।लोकनिर्माण विभाग पीएचई इत्यादि में ईएनसी के सारे पदों पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी हैं। ऐसे न जाने कितने प्रसंग हैं जब किसी अधिकारी का पीए बाद में उसी अधिकारी का बॉस बन गया। ये सब बातें अनेक बार समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं। सोशल मीडिया पर चल रही हैं। फिर इन्हें गोपनीय रखने की क्या आवश्यकता है?क्वांटीफाइएबल डाटा एकत्र करने के लिए सर्वे करने की बात भी मुझे समझ में नहीं आयी।सारा डाटा वरिष्ठता सूचियों में आन रिकॉर्ड मौजूद है।वरिष्ठता सूचियों में से वह डाटा उठाना ही तो है।माननीय न्यायालय ने हर संवर्ग का अलग अलग डाटा मांगा है इसलिए इकजाई भी नहीं करना है।आरक्षित वर्ग को यह बात समझाये जाने की जरूरत है कि “नियुक्ति में आरक्षण” और “पदोन्नति में आरक्षण” दो पृथक पृथक अवधारणाएं हैं।वैसे तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट कर चुका है कि “नियुक्ति में आरक्षण” भी कोई मौलिक अधिकार नहीं है।फिर भी वर्तमान नियमों के अनुसार “नियुक्ति में आरक्षण” स्थिर है लेकिन नागराज प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के बाद “पदोन्नति में आरक्षण” स्थिर नहीं है।हर पदोन्नति के समय यह तय किया जाना है कि “पदोन्नति में आरक्षण” देने की जरूरत है अथवा नहीं और यदि दिया जाना है तो कितना दिया जाना है।यदि प्रतिनिधित्व पर्याप्त है तो नहीं भी दिया जा सकता है। यदि दक्षता पर प्रभाव पड़ सकता है तो नहीं दिया जा सकता है।यदि संबंधित कर्मचारी क्रीमी लेयर में आ रहा है तो नहीं दिया जा सकता है। ये शर्तें नियुक्ति में आरक्षण के लिए नहीं हैं परंतु पदोन्नति में आरक्षण के लिए हैं।पर्याप्त प्रतिनिधित्व की तो बात ही नहीं है यहां तो पर्याप्त से बहुत अधिक प्रतिनिधित्व हो चुका है। लंबे समय तक लगभग डेढ़ दो दशक तक सामान्य वर्ग,पिछड़ा वर्ग,अल्पसंख्यक वर्ग की भर्ती पर रोक लगी रही लेकिन उसी दौरान आरक्षित वर्ग के लिए विशेष भर्ती अभियान चलता रहा इसलिए जब पदोन्नति का समय आता है तो नीचे के संवर्ग में सामान्य,पिछड़ा,अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी कम मिलते हैं और अनारक्षित पदों पर भी आरक्षित वर्ग के ही कर्मचारी पदोन्नत हो जाते हैं।मंत्रालय में तो एक बार ऐसा भी हुआ था कि अनारक्षित वर्ग के पदों पर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नत कर दिया गया था तो बाद में उनकी पदोन्नति वापस ली गयी और उन अनारक्षित पदों पर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नत किया गया।अनारक्षित वर्ग के वे कर्मचारी जिनकी पदोन्नति वापस ली गयी थी अकारण अपमानित हुए थे।
ज्यादा लालच से अंततः नुकसान ही होता है।आरक्षित वर्ग के लोग यदि उनके लिए निर्धारित 36% आरक्षण लेते रहते और बाकी 64% में नहीं जाते तो सबकुछ ठीक चलता रहता।अनारक्षित वर्ग ने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया था।जब अपना कोटा लेने के बाद दूसरे के कोटे में जाने की शुरुआत हुई तबसे बात बिगड़ी।इस तरह के नियम नहीं बनाये जाने थे।और अब यह स्थिति आ गयी कि उनके 36% कोटे पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगे।
इसलिए आरक्षित वर्ग का नेतृत्व करने वाले साथियों से मेरी अपील है कि आप भी हमारे भाई हैं हम सबको इसी समाज में रहना है।आइए इस मसले का न्यायसंगत हल निकालें।आरक्षित वर्ग वाले अनारक्षित वर्ग की स्थिति को समझें और अनारक्षित वर्ग वाले आरक्षित वर्ग की स्थिति को समझें।जब हम अपने अपने खोल से बाहर निकलेंगे तभी न्यायोचित स्थिति बहाल हो सकेगी।

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