सोशल मीडिया पर ‘कंटेंट क्रिएशन’ की सीमाएं: माँ-बेटे के रिश्ते पर उठते सवाल

सोशल मीडिया के दौर में कंटेंट क्रिएशन तेजी से लोकप्रिय हुआ है, लेकिन इसके साथ ही नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर बहस भी तेज हुई है। हाल के दिनों में दिल्ली की एक महिला कंटेंट क्रिएटर के वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। यूज़र्स का एक वर्ग इसे ‘व्यूज़ और लाइक्स की दौड़’ में रिश्तों की मर्यादा लांघने का उदाहरण बता रहा है।

क्या है मामला

सोशल मीडिया पर सक्रिय रचना नाम की एक महिला, जो खुद को कंटेंट क्रिएटर बताती हैं और अपनी पहचान “संतूर मॉम” के तौर पर पेश करती हैं, अपने शॉर्ट वीडियो के लिए चर्चा में हैं। उनके कई वीडियो शॉर्ट-फॉर्म प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें वे अपने बेटे के साथ भी नजर आती हैं। कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि इन वीडियो में इस्तेमाल की गई प्रस्तुति और कपड़ों का चयन असहज करने वाला है, खासकर तब जब कंटेंट में माँ-बेटे का रिश्ता शामिल हो।

यूज़र्स की आपत्ति और बहस

कई लोगों ने कमेंट्स और पोस्ट्स के जरिए सवाल उठाए हैं कि क्या कंटेंट क्रिएशन के नाम पर हर सीमा लांघना सही है? क्या व्यूज़ और लाइक्स के लिए पारिवारिक और भावनात्मक रिश्तों का इस्तेमाल नैतिक है?बच्चों की निजता और मानसिक सुरक्षा को लेकर क्या पर्याप्त सावधानी बरती जा रही है?आलोचकों का मानना है कि माँ-बेटे जैसे पवित्र रिश्ते को सार्वजनिक मनोरंजन और एल्गोरिदम-ड्रिवन प्लेटफॉर्म्स के लिए इस्तेमाल करना समाज में गलत संदेश दे सकता है।

समर्थन में भी आवाज़ें

वहीं, कुछ यूज़र्स इसे व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और रचनात्मक स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं। उनका कहना है कि जब तक कोई कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा, तब तक कंटेंट क्रिएटर को अपनी पसंद का कंटेंट बनाने का अधिकार है।

बड़ा सवाल

यह बहस केवल एक कंटेंट क्रिएटर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे डिजिटल इकोसिस्टम से जुड़ी है, क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ऐसे कंटेंट पर स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने चाहिए? और क्या समाज को भी डिजिटल लोकप्रियता और नैतिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन पर गंभीर चर्चा करनी चाहिए?

निष्कर्ष

कंटेंट क्रिएशन आज आजीविका और पहचान का माध्यम बन चुका है, लेकिन इसके साथ सामाजिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी है। माँ-बेटे जैसे रिश्ते भारतीय समाज में विशेष सम्मान रखते हैं, और इन्हें लेकर उठ रही आपत्तियां यह संकेत देती हैं कि डिजिटल दुनिया में सीमाओं और मर्यादाओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

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