Opinion

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला:
पिता की वसीयत वैध, बिरादरी से बाहर शादी करने पर बेटी संपत्ति से बेदखल

नई दिल्ली। लैंगिक समानता से जुड़े कई ऐतिहासिक निर्णयों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले में यह स्पष्ट किया है कि व्यक्ति को अपनी संपत्ति के संबंध में वसीयत करने की पूर्ण स्वतंत्रता है, भले ही उसका फैसला सामाजिक या पारिवारिक मान्यताओं से जुड़ा हो। शीर्ष अदालत ने केरल के एन. एस. श्रीधरन द्वारा बनाई गई वसीयत को वैध ठहराते हुए उनकी बेटी शाइला जोसेफ को संपत्ति से बेदखल किए जाने के निर्णय को बरकरार रखा है। श्रीधरन ने अपनी नौ संतानों में से एक बेटी को इसलिए वसीयत में शामिल नहीं किया था, क्योंकि उसने अपनी बिरादरी के बाहर विवाह किया था।


हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा
इस मामले में पहले ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने वसीयत पर संदेह जताया था। दोनों अदालतों ने यह मानते हुए कि वसीयत संदिग्ध परिस्थितियों में बनाई गई है, संपत्ति को नौों बच्चों में बराबर बांटने का आदेश दिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों फैसलों को पलटते हुए कहा कि यदि वसीयत कानूनी रूप से वैध तरीके से बनाई गई हो और उसमें किसी प्रकार का दबाव, धोखाधड़ी या अस्वस्थ मानसिक स्थिति साबित न हो तो अदालत को मृतक की इच्छा का सम्मान करना चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति किसे देना चाहता है और किसे नहीं। केवल इस आधार पर कि वसीयत नैतिक या सामाजिक दृष्टि से कठोर प्रतीत होती है, उसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता।


कानूनी और सामाजिक बहस तेज
इस फैसले के बाद एक बार फिर कानून बनाम सामाजिक मूल्यों की बहस तेज हो गई है। जहां एक ओर इसे वसीयत की स्वतंत्रता का समर्थन माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि ऐसे फैसले लैंगिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल विचारों के विपरीत सामाजिक संदेश दे सकते हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वसीयतकर्ता की मर्जी सर्वोपरि है, बशर्ते वह कानून के दायरे में हो।

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