माओवादियों का मोहभंग अब तेज़ी से बढ़ रहा है। सुरक्षा बलों के लगातार दबाव, विकास योजनाओं की पहुंच और बदले हुए माहौल ने आज एक ऐतिहासिक घटना दर्ज की, एक ही दिन में 37 नक्सलियों ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया।
इन आत्मसमर्पण करने वालों में एक बड़ा नक्सली लीडर भी शामिल है, जो करीब 30 वर्षों से अंडरग्राउंड था। इसके साथ ही तीन स्टेट कमेटी स्तर के टॉप कमांडर भी शामिल हैं, जिन पर मिलाकर 1 करोड़ रुपये से अधिक का इनाम घोषित था।
इतनी बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण क्यों महत्वपूर्ण है?
हाल के वर्षों में एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों का सरेंडर बेहद दुर्लभ है। यह दर्शाता है कि जंगलों में हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति, शिक्षा, नौकरी और विकास की ओर विश्वास बढ़ रहा है। सुरक्षा एजेंसियों, समाज और शासन के संयुक्त प्रयासों ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि मुख्यधारा में लौटना ही असली साहस है।
अब जंगलों में विकास की आवाज़
देश और समाज बदल रहा है। कभी जिन इलाकों में केवल बंदूक की आवाज़ गूंजती थी, आज वहाँ सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएँ और सरकारी योजनाएँ पहुँच रही हैं। यही कारण है कि पहले जो युवक बंदूकों की तरफ खींचे जाते थे, वे अब मुख्यधारा की जिंदगी और स्थिर भविष्य को चुन रहे हैं। यह आत्मसमर्पण सिर्फ एक सुरक्षा उपलब्धि नहीं यह नए भारत का संकेत है, जहाँ हिंसा से अधिक भरोसा विकास पर है।
एक ही दिन में 37 नक्सलियों का आत्मसमर्पण – माओवाद पर बड़ा झटका, मुख्यधारा की ओर बढ़ता भरोसा
