मेरठ की घटना: 20 सेकंड में 15 डंडे, छेड़छाड़ के आरोप, दलित ड्राइवर से मारपीट और जातिगत गालियों का चौंकाने वाला मामला

मेरठ, उत्तर प्रदेश। शहर के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में घटित एक दिल दहला देने वाली घटना ने प्रदेश की कानून-व्यवस्था, महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक तानेबाने को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोचिंग जा रही तीन छात्राओं से कथित छेड़छाड़ और इको गाड़ी के दलित चालक की बेरहमी से पिटाई के मामले ने न सिर्फ आम जनमानस को झकझोर दिया है, बल्कि जातिगत और मीडिया नैरेटिव के दुरुपयोग पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या है पूरा मामला – 20 सेकंड में 15 डंडों की बर्बरता

घटना मेरठ शहर के शास्त्रीनगर इलाके की है, जहां तीन छात्राएं इको गाड़ी से कोचिंग जा रही थीं। रास्ते में छह मनचलों ने छात्राओं पर अभद्र टिप्पणियां कीं और कथित तौर पर छेड़छाड़ की। जब छात्राओं के ड्राइवर ने विरोध किया, तो उसे सड़क पर गिराकर बुरी तरह पीटा गया। सीसीटीवी फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि सिर्फ 20 सेकंड में ड्राइवर पर 15 डंडे बरसाए गए।

गिरफ्तार आरोपी, बाकियों की तलाश

घटना के बाद पुलिस ने एक आरोपी शिवम त्यागी को गिरफ्तार किया है, जबकि अन्य पांच फरार हैं। पुलिस का कहना है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए टीमें गठित कर दी गई हैं और जल्द ही बाकी आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

छेड़छाड़ या झूठा नैरेटिव? — छात्राओं ने नहीं की शिकायत

चौंकाने वाली बात यह है कि किसी भी छात्रा ने अब तक पुलिस में छेड़छाड़ की कोई आधिकारिक शिकायत नहीं की है। इसके बावजूद मीडिया में इसे “छेड़छाड़” की घटना बताया गया, और एक तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता ‘एंजेल’ को मामले में घुसा दिया गया। सोशल मीडिया पर इस एंगल की विश्वसनीयता को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं।

जातिगत गाली और दलित उत्पीड़न का एंगल – नया मोड़

बाद में यह खबर फैली कि पिटने वाला ड्राइवर दलित समुदाय से आता है, और आरोपियों ने उसे मारते समय “भंगी”, “चूहड़ा” जैसे जातिसूचक शब्द कहे। अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि जब कोई ड्राइवर अजनबी था, तो उसकी जाति आरोपियों को कैसे पता चल गई?
क्या यह सच में जातीय घृणा थी, या बाद में जोड़ा गया एक नैरेटिव एंगल?

जांच जारी, लेकिन मीडिया ट्रायल तेज

एक तरफ पुलिस अभी तथ्यों की जांच में जुटी है, वहीं सोशल मीडिया पर मामले को राजनीतिक, जातिगत और सामाजिक ध्रुवीकरण के लिए हथियार बना लिया गया है।

समाज के लिए गंभीर सवाल

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर झूठे आरोप और सच्ची घटनाओं में फर्क कैसे किया जाएगा? जाति का राजनीतिक इस्तेमाल और तथ्यों की अनदेखी, क्या ये सामाजिक न्याय की सच्ची भावना के खिलाफ नहीं?

क्या ‘मीडिया नैरेटिव’ अब पुलिस जांच से पहले फैसला सुना देता है?

निष्कर्ष:  मेरठ की यह घटना केवल छेड़छाड़, मारपीट या जातीय घृणा तक सीमित नहीं है — यह आज के भारत में नैरेटिव की ताकत, झूठ-सच की लड़ाई और इंसानियत के लिए गंभीर चेतावनी है।

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