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IAS टीना डाबी को रील स्टार कहने पर छात्रों की गिरफ़्तारी सवाल, सिस्टम और अभिव्यक्ति की आज़ादी

बाड़मेर (राजस्थान)  । बाड़मेर में छात्रों की कथित गिरफ़्तारी ने प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि कुछ छात्रों ने IAS अधिकारी टीना डाबी को रील स्टार कहा और इसी टिप्पणी को आधार बनाकर कठोर कार्रवाई की गई। यह घटना सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक विमर्श तक, अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम प्रशासनिक अहंकार की बहस को तेज कर रही है।

सवाल पूछना कब से अपराध हो गया?

लोकतंत्र में सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों की सार्वजनिक गतिविधियों पर टिप्पणी चाहे वह प्रशंसा हो या आलोचना नागरिकों का अधिकार है। यदि कोई अफ़सर सोशल मीडिया पर सक्रिय है, रील्स बनाता है, अपनी छवि सार्वजनिक करता है, तो जनता का सवाल पूछना स्वाभाविक है। तो फिर एक शब्द रील स्टार पर गिरफ़्तारी किस कानून के तहत?

प्रशासन या अहंकार का दमन?

आलोचकों का कहना है कि यह कदम कानून-व्यवस्था के बजाय असहमति दबाने जैसा दिखता है। क्या टिप्पणी मानहानि की श्रेणी में आती है? क्या कोई हिंसा, धमकी या घृणा फैलाई गई?नया सिर्फ नाराज़गी को कानून का चोला पहनाया गया? यदि जवाब नहीं है, तो कार्रवाई अत्यधिक और असंवैधानिक प्रतीत होती है।

लोकतंत्र में अफ़सरशाही की सीमाएँ

अफ़सर लोकसेवक होते हैं, लोकतंत्र में वे आलोचना से परे नहीं। कठोर कार्रवाई का संदेश यह जाता है कि सत्ता सवालों से डरती है, जबकि परिपक्व प्रशासन संवाद से जवाब देता है, दमन से नहीं।

छात्र, युवा और भय का माहौल

छात्रों पर कार्रवाई का एक खतरनाक संकेत यह भी है कि युवा सवाल पूछने से डरें। यह न सिर्फ अभिव्यक्ति की आज़ादी पर चोट है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्कारों को भी कमजोर करता है।

निष्कर्ष

अगर अफ़सर रीलबाज़ी करेंगे, तो जनता सवाल भी पूछेगी। यह प्रशासनिक परिपक्वता की परीक्षा है, कानून का इस्तेमाल न्याय के लिए हो, अहंकार के लिए नहीं।बीबाड़मेर को नया बनाना है तो संवेदनशील, संवादशील और संविधान-सम्मत प्रशासन से बनाइएडर और दमन से नहीं।

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