महाराष्ट्र के बीड में मानवता शर्मसार: गन्ना मजदूर महिलाओं के साथ हृदयविदारक अमानवीयता, जबरन निकाले गए 843 गर्भाशय

महाराष्ट्र के बीड ज़िले से एक ऐसा अमानवीय मामला सामने आया है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, बीड में 843 गन्ना मज़दूर महिलाओं के जबरन गर्भाशय (बच्चेदानी) निकाल दिए गए। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका—बीते 10 वर्षों में करीब 13,000 महिलाओं की हाइजेक्टॉमी (गर्भाशय हटाने की सर्जरी) की गई है।
क्यों कराई गई गर्भाशय सर्जरी?
यह मामला तब सामने आया जब 2024 की गन्ना कटाई से पहले सैकड़ों महिला मजदूरों का गर्भाशय सर्जरी कर दिया गया, ताकि उन्हें माहवारी (पीरियड्स) के दौरान छुट्टी ना लेनी पड़े।
ठेकेदारों को लगता था कि पीरियड्स के दौरान छुट्टियों के कारण मजदूरी का नुकसान होता है, और इस ‘समस्या’ का समाधान उन्होंने महिलाओं की प्रजनन क्षमता खत्म करके निकाला।
क्या यह हाइजेक्टॉमी वास्तव में मेडिकल ज़रूरत थी?
जांच में सामने आया है कि:
- अधिकतर मामलों में महिलाओं को यह नहीं बताया गया कि उनका गर्भाशय क्यों निकाला जा रहा है।
- कई बार तो महिलाओं को मेडिकल रिपोर्ट तक नहीं दिखाई गई।
- सर्जरी के लिए सहमति पत्रों पर दबाव डालकर या धोखे से दस्तखत करवाए गए।
मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन
यह मामला ना केवल स्वास्थ्य सेवा की अनदेखी को दिखाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि महिला श्रमिकों को आज भी इंसान नहीं, केवल ‘काम की मशीन’ समझा जाता है।
बिना मेडिकल आवश्यकता के किसी महिला का गर्भाशय निकालना एक प्रकार का शारीरिक उत्पीड़न और महिला अधिकारों का गंभीर हनन है।
दोषियों पर कार्रवाई की मांग
इस गंभीर मामले में अब सवाल उठ रहे हैं कि:
- कौन डॉक्टर थे जो यह सर्जरी कर रहे थे?
- क्या स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन को इस कुप्रथा की जानकारी थी?
- क्या गन्ना मिल मालिक और ठेकेदारों को सजा मिलेगी?
क्या होना चाहिए आगे?
- राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग द्वारा तत्काल जांच हो।
- पीड़ित महिलाओं को मुआवजा, मुफ्त इलाज और मानसिक परामर्श सेवा मिले।
- ठेकेदारों, अस्पतालों और दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
- गन्ना मजदूरों के लिए स्वास्थ्य अधिकार और काम के दौरान पीरियड अवकाश की स्पष्ट नीति बनाई जाए।
निष्कर्ष:
महाराष्ट्र के बीड ज़िले में सामने आया यह गर्भाशय सर्जरी स्कैंडल, भारत में असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के शोषण और उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार की भयावह तस्वीर पेश करता है।
यह समय है जब सरकार, न्यायपालिका और समाज एकजुट होकर यह संदेश दें कि “महिलाएं मजदूर हैं, मशीन नहीं”।
