कूनो, मध्य प्रदेश। भारत में विलुप्त घोषित चीतों की वापसी की कहानी अब एक नए स्वर्णिम अध्याय में प्रवेश कर चुकी है। 1952 में चीतों को पूरी तरह खत्म मान लिया गया था, लेकिन 2022 में नामीबिया से आए आठ चीतों ने देश में संरक्षण की उम्मीद को फिर जगाया। शुरुआती दौर में संदेह, आलोचना और आशंकाओं के बीच जब किडनी संक्रमण से एक चीते की मौत हुई तो विरोधियों ने परियोजना पर सवाल खड़े किए। लेकिन कूनो नेशनल पार्क में जन्मी नई पीढ़ी ने इन सभी शंकाओं को पीछे छोड़ते हुए एक नई उम्मीद पैदा की।
2023 में सिया, वीरा, गामिनी, आशा और निरवा जैसी मादा चीतों ने कुल मिलाकर 19 चीता शावकों को जन्म दिया। इनमें सबसे खास थी सिया की बेटी ‘मुखी’, जो आधुनिक भारत में जन्म लेने वाली पहली चीता मादा थी और शुरुआत से ही मजबूत जीवित रहने वाली के रूप में पहचानी गई।
अब इसी मुखी ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि जोड़ दी है। 31 महीने की उम्र में मुखी ने पाँच स्वस्थ शावकों को जन्म देकर भारत में जन्मे किसी चीते के सफल प्रजनन का पहला उदाहरण पेश किया है। यह घटना न सिर्फ कूनो के लिए, बल्कि पूरे भारत के संरक्षण इतिहास के लिए एक मील का पत्थर है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह उपलब्धि इस बात का मजबूत संकेत है कि चीते भारतीय आवास में पूरी तरह अनुकूल हो रहे हैं। इससे आत्मनिर्भर, स्वस्थ और आनुवंशिक रूप से विविध चीता आबादी के निर्माण का मार्ग मजबूत हुआ है। आज कूनो नेशनल पार्क की चीता आबादी बढ़कर 30 हो गई है, जिसमें 12 वयस्क और 18 शावक शामिल हैं। पहली तस्वीर में मुखी के जन्म का क्षण दर्ज है, और दूसरी में जब उसने खुद नए जीवन को जन्म दिया। यह क्षण संरक्षण प्रयासों की सबसे बड़ी जीत बनकर सामने आया है।
कूनो नेशनल पार्क से आई खुशी की खबर: भारत में जन्मी पहली मादा चीता मुखी ने दिए पाँच शावक, प्रोजेक्ट चीता को मिली ऐतिहासिक सफलता
