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देश में ज़हर, दुबई में घर: भारत में सांप्रदायिक नैरेटिव और विदेश में ऐशो-आराम पर उठते सवाल

नई दिल्ली / मुंबई। भारत में सांप्रदायिकता, धार्मिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक उन्माद पर बहस कोई नई नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में एक विरोधाभास लगातार चर्चा में है—जो लोग भारत में ज़हर भरी राजनीति और नफरत का नैरेटिव गढ़ते या उसका समर्थन करते दिखते हैं, वही विदेश, खासकर दुबई जैसे देशों में, आरामदायक और सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। इस दोहरे चरित्र को लेकर सामाजिक और राजनीतिक हलकों में गंभीर सवाल उठने लगे हैं।

इस बहस की शुरुआत अक्सर 2019 में बनी फिल्म “PM नरेंद्र मोदी” से जोड़ी जाती है। विवेक ओबेरॉय द्वारा अभिनीत यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थकों ने भी फिल्म से दूरी बनाई। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि फिल्म का व्यावसायिक उद्देश्य भले पूरा न हुआ हो, लेकिन इससे विवेक ओबेरॉय सत्ता प्रतिष्ठान की ‘गुडबुक’ में जरूर शामिल हो गए।

बताया जाता है कि विवेक ओबेरॉय दुबई में रहते हैं और वहां रियल एस्टेट, डायमंड ज्वेलरी, अल्कोहलिक बेवरेज, एग्री-टेक और एड-टेक जैसे क्षेत्रों में बड़ा कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर चुके हैं। वे दुबई स्थित BNW डेवलपमेंट्स के को-फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, जिसके तहत 23 से अधिक लग्जरी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिनकी वैल्यू बिलियंस में बताई जाती है। उनकी कुल संपत्ति लगभग ₹1200 करोड़ आंकी जाती है। आलोचकों का आरोप है कि भारत में वैचारिक रूप से विभाजनकारी कंटेंट से जुड़े लोग विदेश में बिल्कुल अलग, सुविधाजनक जीवन जी रहे हैं।

इसी कड़ी में सोनू निगम का नाम भी अक्सर लिया जाता है। 17 अप्रैल 2017 को अज़ान को लेकर उनके ट्वीट्स ने देशभर में तीखी बहस छेड़ दी थी। उन्होंने अज़ान की आवाज़ को “जबरन धार्मिकता” कहकर आलोचना की थी। इसके बाद देश में अज़ान, लाउडस्पीकर और धार्मिक अभिव्यक्ति को लेकर विवाद तेज हुआ।
हालांकि, यह भी तथ्य है कि सोनू निगम दुबई में अपने परिवार के साथ रहते हैं, जहां वे होम रिकॉर्डिंग स्टूडियो चलाते हैं, कॉन्सर्ट करते हैं और नियमित रूप से म्यूजिक प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं—वह भी वहां की अज़ान और धार्मिक माहौल के बीच, बिना किसी सार्वजनिक आपत्ति के।

बॉलीवुड के अन्य बड़े नामों का दुबई से गहरा रिश्ता भी चर्चा में रहता है। अभिनेता संजय दत्त का दुबई में लग्जरी मैनशन बताया जाता है, जहां उनकी पत्नी मान्यता दत्त और बच्चे पहले से रह रहे हैं। मान्यता दत्त वहां Dutt’s Franktea नाम से ऑनलाइन फूड वेंचर चलाती हैं।
फिल्म धुरंधर में आईबी चीफ अजीत डोभाल की भूमिका निभाने वाले आर. माधवन भी अपने परिवार के साथ दुबई में रहते हैं। वहीं, इसी फिल्म में ISI अधिकारी की भूमिका निभाने वाले अर्जुन रामपाल के भी दुबई में घर लेने की खबरें हैं।

कारोबारी जगत में भी यह विरोधाभास साफ दिखता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुकेश अंबानी ने अपने बेटे अनंत अंबानी के लिए दुबई के प्रीमियम इलाके पाम जुमेराह में लगभग ₹640 करोड़ की संपत्ति खरीदी है। वहीं, गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी लंबे समय से दुबई में रहकर अडाणी समूह के ऑफशोर ऑपरेशंस संभालते हैं और उनके पास वहां कई महंगी प्रॉपर्टीज बताई जाती हैं।

आलोचकों का कहना है कि भारत में फैले इस्लामोफोबिया और सांप्रदायिक राजनीति की कीमत आम और गरीब नागरिक चुकाते हैं—कभी अखलाक, कभी पहलू खान, कभी तबरेज या अन्य पीड़ितों के रूप में। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में 16 लाख से अधिक भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी, जिनमें बड़ी संख्या संपन्न वर्ग की बताई जाती है। वहीं, देश के लगभग 80 करोड़ लोग सरकारी सहायता पर निर्भर हैं।

कुल मिलाकर सवाल यही है—
भारत में नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति कौन चला रहा है, और उसका लाभ कौन उठा रहा है?
जब जिम्मेदार और प्रभावशाली लोग विदेश में सुरक्षित, समृद्ध जीवन जीते हैं, तो इसकी कीमत आखिरकार देश का आम नागरिक ही क्यों चुकाता है?

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