नई दिल्ली । देश की साहित्यिक और बौद्धिक राजधानी में एक विशिष्ट और स्मरणीय सांस्कृतिक क्षण तब साकार हुआ, जब युवा लेखक एवं प्रथम उपन्यासकार कार्तिकेय वाजपेयी की बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘द अनबिकमिंग’ का भव्य लोकार्पण किया गया। यह आयोजन प्रभा खेतान फाउंडेशन की प्रतिष्ठित साहित्यिक पहल ‘किताब’ के अंतर्गत संपन्न हुआ, जिसने समकालीन अध्यात्म, दर्शन और कथा-साहित्य के बीच एक गहन एवं सार्थक संवाद को मंच प्रदान किया।
इस गरिमामय अवसर पर पद्म विभूषण से सम्मानित दार्शनिक एवं राजनेता डॉ. कर्ण सिंह, पद्म विभूषण से सम्मानित पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, वैष्णवाचार्य एवं धर्मगुरु आचार्य श्री पुंडरिक महाराज, तिब्बत हाउस के निदेशक गेशे दोरजी दामदुल तथा भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ सहित अनेक विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और ऊँचाई प्रदान की। बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी, विद्वान और विचारशील पाठक भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
आध्यात्मिक प्रामाणिकता से युक्त कृति
‘द अनबिकमिंग’ को विशेष बनाता है इसमें शामिल परम पावन दलाई लामा और स्वामी सर्वप्रियानंद की भूमिकाएँ (फॉरवर्ड), जिन्हें वक्ताओं ने पुस्तक की दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विश्वसनीयता का सशक्त प्रमाण बताया। यह उपन्यास आत्म-चिंतन, करुणा और चेतन उपस्थिति की परंपरा से जुड़ता है।
लेखक का विचार: पहचान से परे जाने का आमंत्रण
पुस्तक विमोचन के दौरान लेखक कार्तिकेय वाजपेयी ने कहा कि ‘द अनबिकमिंग’ इस समझ पर आधारित है कि मानव दुःख का बड़ा कारण उन पहचानों से चिपके रहना है, जो भय और अपेक्षाओं से निर्मित होती हैं। उन्होंने इसे “एक शांत वापसी” बताते हुए कहा कि यह जीवन को स्वयं अपना उद्देश्य प्रकट करने देने का आमंत्रण है। आधुनिक जीवन में आत्म-मंथन को उन्होंने स्पष्ट, सजग और संतुलित कर्म के लिए अनिवार्य बताया।
विचार-गोष्ठी में गूंजे गहन दार्शनिक प्रश्न
लोकार्पण अवसर पर आयोजित पैनल चर्चा में पहचान, उद्देश्य, आंतरिक स्पष्टता और ‘अनबिकमिंग’ की प्रक्रिया जैसे विषयों पर सारगर्भित संवाद हुआ। चर्चा का संचालन प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना एवं पंडित बिरजू महाराज की पौत्री शिंजिनी कुलकर्णी ने किया। श्रोताओं की सक्रिय सहभागिता ने यह स्पष्ट किया कि पुस्तक के विचार समकालीन समाज की गहरी जिज्ञासाओं को स्पर्श करते हैं।
डॉ. कर्ण सिंह ने उपन्यास को भारतीय दार्शनिक परंपरा से जोड़ते हुए सार्वजनिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के सामंजस्य का सशक्त उदाहरण बताया। वहीं डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने पुस्तक में दक्षता, एकाग्रता और आत्म-नियंत्रण के दर्शन को रेखांकित किया। आचार्य श्री पुंडरिक महाराज ने इसे पहचान से परे जाकर आत्मिक सीख की यात्रा बताया, जबकि गेशे दोरजी दामदुल ने दलाई लामा की शिक्षाओं से इसके गहरे साम्य पर प्रकाश डाला।
उपन्यास की कथा और लेखक का परिचय
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास एक प्रसिद्ध क्रिकेटर सिद्धार्थ और उसके गुरु अजय के संबंधों के माध्यम से पहचान, भय, अपेक्षाओं और आत्म-खोज की संवेदनशील कथा प्रस्तुत करता है।
कार्तिकेय वाजपेयी एक अनुभवी वकील, राज्य-स्तरीय क्रिकेट खिलाड़ी और ध्यान-साधना के गंभीर अभ्यासकर्ता हैं। यही बहुआयामी अनुभव उनके लेखन को गहराई और प्रामाणिकता प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, ‘द अनबिकमिंग’ न केवल एक उपन्यास, बल्कि आधुनिक जीवन में आत्म-चिंतन और संतुलन की तलाश का एक विचारशील दस्तावेज़ बनकर उभरता है।
समकालीन अध्यात्म और कथा-साहित्य का सशक्त संवाद: नई दिल्ली में कार्तिकेय वाजपेयी की पुस्तक ‘द अनबिकमिंग’ का गरिमामय लोकार्पण
