पुणे। ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाते हुए MIT वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी (MIT-WPU) के ग्रीन हाइड्रोजन रिसर्च सेंटर ने खेती के कचरे से ग्रीन हाइड्रोजन और बायो-सीएनजी उत्पादन की कार्बन-नेगेटिव तकनीक विकसित की है। डॉ. रत्नदीप जोशी के नेतृत्व में हुई इस रिसर्च ने साबित कर दिया है कि खेती के अलग-अलग कचरे को उपयोग में लाकर देश को स्वच्छ, किफायती और आत्मनिर्भर ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है।
500 किग्रा/दिन क्षमता वाला पायलट प्लांट और चार पेटेंट
MIT-WPU परिसर में स्थापित 500 किलो/दिन क्षमता वाले पायलट प्लांट और प्राप्त चार पेटेंट इस इनोवेशन की सफलता को दर्शाते हैं। पारंपरिक गैसीफिकेशन तकनीक से केवल 5-7% गैस निकलती थी, जबकि नई प्रक्रिया ने इसे 12% तक बढ़ाया है। यही नहीं, इस तकनीक से बनी बायोगैस में अधिक मीथेन मौजूद रहती है, जिससे ग्रीन कैटेलिटिक पायरोलिसिस प्रक्रिया के जरिए ग्रीन हाइड्रोजन तैयार किया जाता है।
ग्रीन हाइड्रोजन की लागत सिर्फ 1 डॉलर प्रति किलोग्राम
जहाँ इलेक्ट्रोलिसिस से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में लागत 2 डॉलर प्रति किलोग्राम से भी ज़्यादा आती है, वहीं MIT-WPU की इस तकनीक से यह खर्च घटकर 1 डॉलर/किग्रा तक पहुँच गया है। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित नहीं होती, जिससे महंगे कार्बन कैप्चर सिस्टम की ज़रूरत नहीं रहती।
किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद
यह इनोवेशन न केवल किसानों को खेती के कचरे से आर्थिक लाभ दिलाएगा बल्कि उन्हें बायोफर्टिलाइज़र का विकल्प भी देगा। इस रिसर्च से विकसित ग्रीन-कोटेड स्लो-रिलीज़ बायोफर्टिलाइज़र को दो पेटेंट मिले हैं। यह यूरिया पर निर्भरता घटाने के साथ-साथ मिट्टी में मौजूद नमक की समस्या को कम करेगा और फसल उत्पादन बढ़ाएगा।
राष्ट्रीय मिशनों के अनुरूप पहल
यह शोध प्रधानमंत्री मोदी के नेट-जीरो लक्ष्य (2070), आत्मनिर्भर भारत मिशन, LiFE (Lifestyle for Environment) और राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के अनुरूप है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस इनोवेशन के जरिए भारत न केवल 2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है, बल्कि 2050 तक नेट-जीरो भी हासिल कर सकता है।
उद्योग जगत की दिलचस्पी
इस इनोवेशन ने पहले ही ऊर्जा उद्योग का ध्यान खींच लिया है। कई कंपनियाँ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और साझेदारी में दिलचस्पी दिखा रही हैं। MIT-WPU का कहना है कि यह पहल छात्रों को इंडस्ट्री-रेडी बनाने के साथ-साथ किसानों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सभी के लिए फायदेमंद होगी।
MIT-WPU का कार्बन-नेगेटिव इनोवेशन: खेती के कचरे से बनेगा ग्रीन हाइड्रोजन और बायो-सीएनजी
