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MIT-WPU का बड़ा इनोवेशन: लिक्विड हाइड्रोजन के सुरक्षित परिवहन की नई तकनीक

LOHC सिस्टम से भारत के क्लीन एनर्जी मिशन को मिली नई रफ्तार

मुंबई/पुणे । भारत के क्लीन एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मजबूती देते हुए MIT वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी (MIT-WPU) के शोधकर्ताओं ने लिक्विड हाइड्रोजन के सुरक्षित, किफायती और आसान परिवहन की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने लिक्विड ऑर्गेनिक हाइड्रोजन कैरियर (LOHC) आधारित ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित की है, जिससे हाइड्रोजन को सामान्य तापमान और दबाव पर एक स्थिर तरल रूप में सुरक्षित तरीके से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। यह खोज हाइड्रोजन इकोनॉमी में अब तक की सबसे बड़ी बाधा—सुरक्षित परिवहन और स्टोरेज—को दूर करने में निर्णायक साबित हो सकती है।

लंबे संघर्ष के बाद मिली बड़ी सफलता

इस शोध के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रो. (डॉ.) राजीब कुमार सिन्हाराय ने बताया कि शुरुआती लगभग 50 दिनों तक कोई ठोस परिणाम नहीं मिले, लेकिन टीम ने हार नहीं मानी। करीब 10 महीनों में 100 से अधिक ट्रायल के बाद ऐसा परिणाम हासिल हुआ, जो इससे पहले कहीं दर्ज नहीं था। चूंकि इस प्रक्रिया का कोई पूर्व लिखित मॉडल मौजूद नहीं था, इसलिए पूरी टेक्नोलॉजी को शुरुआत से विकसित किया गया।

इंडस्ट्री-अकादमिक सहयोग से निकला समाधान

यह इनोवेशन तब शुरू हुआ जब ओम क्लीनटेक प्राइवेट लिमिटेड (OCPL) एक जटिल तकनीकी समस्या लेकर MIT-WPU पहुँची—जिसका समाधान IITs सहित कई संस्थान नहीं निकाल पाए थे। OCPL ने इस प्रोप्राइटरी तकनीक के लिए इंटरनेशनल पेटेंट फाइलिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
OCPL के फाउंडर श्री सिद्धार्थ मयूर के अनुसार, यह तकनीक नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और आत्मनिर्भर भारत के विज़न के अनुरूप है, जिसे आगे चलकर एक कमर्शियल प्रोडक्ट के रूप में विकसित किया जाएगा।

LOHC तकनीक कैसे बदलती है तस्वीर

अब तक हाइड्रोजन को या तो हाई-प्रेशर सिलेंडर में रखा जाता था या –253°C पर लिक्विड किया जाता था, दोनों ही महंगे और जोखिमभरे तरीके हैं। MIT-WPU की LOHC तकनीक में हाइड्रोजनेशन फेज़ में हाइड्रोजन को एक विशेष ऑर्गेनिक लिक्विड से जोड़कर सुरक्षित तरल बनाया जाता है। डी-हाइड्रोजनेशन फेज़ में गंतव्य पर हाइड्रोजन रिलीज़ कर लिया जाता है और कैरियर लिक्विड दोबारा उपयोग में आता है। इसका फायदा यह है कि हाइड्रोजन को मौजूदा फ्यूल टैंकर, स्टोरेज कंटेनर और पाइपलाइन नेटवर्क से भी ले जाया जा सकता है, जिससे लागत और जोखिम दोनों कम होते हैं।

तकनीकी उपलब्धियां जो इसे खास बनाती हैं

केवल 2 घंटे में हाइड्रोजन स्टोरेज, जबकि वैश्विक स्तर पर 18 घंटे लगते हैं। प्रक्रिया 130°C पर पूरी (सामान्यतः 170°C आवश्यक), दबाव सिर्फ 56 बार 15.6 लीटर कैरियर में

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