युवाओं में बढ़ रही डायबिटिक रेटिनोपैथी : नेत्र विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

मुंबई, ।  भारत में दृष्टिहीनता के बढ़ते मामलों को देखते हुए नेत्र विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डायबिटीज का पता चलने के केवल 3–5 साल के भीतर ही युवाओं में डायबिटिक रेटिनोपैथी के केस तेजी से सामने आ रहे हैं। पहले इसे केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब 40 वर्ष से कम उम्र के लोग भी बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आ रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि खराब जीवनशैली, ब्लड शुगर का नियंत्रण न होना, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और किडनी संबंधी बीमारियाँ इस समस्या को और बढ़ा रही हैं। वर्ल्ड रेटिना डे से पहले डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल के विशेषज्ञों ने बताया कि डायबिटीज से पीड़ित लगभग 12–15% मरीजों को रेटिनोपैथी होती है, जिनमें से 4–5% लोगों की दृष्टि खोने का गंभीर खतरा रहता है।

शुरुआती लक्षणों में आँखों के सामने तैरते धब्बे, धुंधलापन, रात में कम दिखाई देना और रंग पहचानने में कठिनाई शामिल हैं। डॉक्टरों ने ज़ोर दिया कि नियमित आँखों की जाँच और समय पर उपचार से रोशनी खोने का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है। हल्के मामलों में ब्लड शुगर को नियंत्रित कर स्थिति संभाली जा सकती है, जबकि गंभीर मामलों में लेज़र ट्रीटमेंट या सर्जरी की ज़रूरत होती है।

नेत्र विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि बीमारी अक्सर बिना लक्षण चुपचाप बढ़ती है और मरीजों को देर से पता चलता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण स्थिति और बिगड़ जाती है। हालांकि एआई आधारित डायग्नोस्टिक टूल्स और सामुदायिक शिविरों की वजह से शुरुआती पहचान अब आसान हो रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखना, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और धूम्रपान से परहेज़ डायबिटिक रेटिनोपैथी से बचाव के सबसे कारगर उपाय हैं।

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