जैसे-जैसे वर्ष 2025 अपने अंतिम पड़ाव पर है, भारत का ऋण परिदृश्य गति और मानकीकरण के एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है। जिन कर्ज फैसलों में पहले कई दिन या सप्ताह लगते थे, वे अब कुछ ही मिनटों में पूरे हो रहे हैं, यहाँ तक कि लोन अगेंस्ट प्रॉपर्टी (LAP) जैसे बड़े ऋणों में भी। ऋण देने की यह तेज़ रफ्तार अब उपभोक्ताओं की खरीदारी की आदतों और आर्थिक चक्र के अनुरूप ढल चुकी है। होम क्रेडिट इंडिया की ‘हाउ इंडिया बोरोज़ 7.0’ रिपोर्ट इस बदलाव को रेखांकित करती है। अध्ययन के अनुसार, 49% ऋण लेने वाले स्मार्टफोन और घरेलू उपकरणों जैसी रोजमर्रा की जरूरतों को अपग्रेड करने के लिए क्रेडिट का उपयोग कर रहे हैं। जैसे-जैसे क्रेडिट दैनिक जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है, 2026 की ओर बढ़ते हुए बहस सिर्फ “रफ्तार” तक सीमित नहीं रह गई है। अब असली सवाल यह है कि ऋणदाता ग्राहकों की बदलती अपेक्षाओं को कितनी गहराई से समझते हैं और उन्हें कितना व्यक्तिगत अनुभव दे पाते हैं।
1. रफ्तार अब उत्सव नहीं, अपेक्षा है
2025 तक आते-आते ऋण बाजार उस बिंदु पर पहुँच गया है जहाँ तेज़ निर्णय एक मानक बन चुका है। पहले जिन प्रक्रियाओं में एक सप्ताह लगता था, वे अब मिनटों में पूरी हो रही हैं। इससे ऋण उपभोक्ताओं की तत्काल जरूरतों और खर्च की मंशा के साथ कदमताल कर पा रहा है। जो ऋणदाता रोजमर्रा की खरीदारी के साथ क्रेडिट को जोड़कर लगभग रियल-टाइम निर्णय दे पा रहे हैं, वही नए बेंचमार्क तय कर रहे हैं।
2. केवल ऑटोमेशन अब पर्याप्त नहीं
पारंपरिक दौर में ऋण निर्णय मुख्यतः क्रेडिट स्कोर और स्थिर प्रोफाइल पर आधारित होते थे। 2026 में यह दृष्टिकोण सीमित साबित होगा। अग्रणी ऋणदाता अब आंतरिक और बाहरी डेटा के मिश्रण की ओर बढ़ रहे हैं—जैसे जीएसटी फाइलिंग, रोजगार पैटर्न, भू-स्थानिक जानकारी और सोशल सिग्नल। लक्ष्य केवल “हाँ या ना” कहना नहीं, बल्कि लचीले और प्रासंगिक वित्तीय समाधान देना है।
3. वैयक्तिकरण का नया चरण
पहले नियम-आधारित मॉडल और फिर पर्सनल लोन व को-ब्रांडेड उत्पादों का दौर आया। अगला चरण है ऋण का रोजमर्रा के खर्चों में सहज एकीकरण। अब ओम्नीचैनल अनुभव एक विकल्प नहीं, बल्कि मानक बन रहा है। ऋणदाता रोजगार डेटा, सोशल प्लेटफॉर्म और वैकल्पिक संकेतों के जरिए ग्राहकों की गहरी समझ विकसित कर रहे हैं—जिससे पर्सनल टॉप-अप, एक्सेसरी लोन या क्रेडिट इंश्योरेंस से जुड़े उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं।
4. जीवन के चरणों के अनुसार उत्पाद
भारतीय ऋणदाता अब औसत ग्राह के बजाय जीवन के चरणों के आधार पर उत्पाद डिज़ाइन कर रहे हैं। छात्रों के लिए पढ़ाई की अवधि के अनुरूप मोहलत, पहली नौकरी पाने वालों के लिए आय के साथ बढ़ने वाली क्रेडिट सीमा, स्व-रोजगार वालों के लिए कागजी औपचारिकताओं के बजाय कैश-फ्लो आधारित मूल्यांकन। यह दृष्टिकोण ऋण को अधिक व्यावहारिक और समावेशी बना रहा है।
5. ओम्नीचैनल लेंडिंग अब बुनियादी आवश्यकता
रिपोर्ट के अनुसार 65% ऋण लेने वाले ईएमआई कार्ड को प्राथमिकता देते हैं और 57% ऑनलाइन खरीदारी करते हैं। ऑनलाइन माध्यमों से ऋण लेने की प्राथमिकता एक साल में 32% से बढ़कर 51% हो गई है, जबकि भौतिक शाखाओं पर निर्भरता घटकर 30% रह गई है। इससे स्पष्ट है कि ओम्नीचैनल लेंडिंग अब नवाचार नहीं, बल्कि मूल अपेक्षा बन चुकी है।
6. ऋण लेने वालों का भरोसा कायम
वैश्विक और घरेलू आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद, उपभोक्ताओं का भरोसा बना हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि 46% उधारकर्ता ऋण लेने से पहले अपनी ईएमआई चुकाने की क्षमता का आकलन करते हैं, जबकि 28% लोग घर खरीदने के लिए क्रेडिट को लेकर आश्वस्त हैं। यह एक संतुलित लेकिन सकारात्मक मानसिकता को दर्शाता है।
7. 2026 में एआई तय करेगा दिशा
2026 में सबसे बड़ा परिवर्तन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के व्यापक उपयोग से आएगा। एआई पात्रता जांच, जोखिम पूर्वानुमान और चेतावनी संकेतों के प्रबंधन में मदद करेगा। हालांकि, भरोसे और आश्वासन के क्षणों में मानवीय संपर्क की भूमिका बनी रहेगी।
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