भोपाल । मसूड़ों की बीमारियां दिखने में मामूली लगती हैं, लेकिन समय पर ध्यान न देने पर यह गंभीर समस्याओं में बदल सकती हैं। डॉ. सोनिया दत्ता (एमडीएस, पीएचडी, प्रोफेसर पब्लिक हेल्थ डेंटिस्ट्री) का कहना है कि मसूड़ों की बीमारियां दांतों के खराब होने के साथ-साथ डायबिटीज़, गर्भावस्था में जटिलताएं और कई अन्य स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा देती हैं। इसलिए इनके शुरुआती लक्षण पहचानकर उपचार करना बेहद जरूरी है।
मसूड़ों की बीमारियों के मुख्य कारण
डॉ. दत्ता के अनुसार मसूड़ों में प्लॉक का जमना इस समस्या की जड़ है। अगर प्लॉक समय पर साफ न किया जाए तो यह टार्टर में बदलकर जिंजिवाइटिस और आगे चलकर पेरिडोंटाइटिस का कारण बनता है। इसके साथ ही धूम्रपान/तंबाकू सेवन, डायबिटीज़, खराब ओरल हाइजीन और आनुवंशिक कारण भी जोखिम बढ़ाते हैं। पेरिडोंटाइटिस की स्थिति गंभीर होती है और कई बार दांत निकालने तक की नौबत आ सकती है।
आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ हैं कारगर समाधान
लौंग और नीम में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एनालजेसिक गुण मसूड़ों की सूजन और इन्फेक्शन से लड़ने में बेहद प्रभावी हैं। डॉ. दत्ता बताती हैं कि डाबर रैड पेस्ट में ये दोनों प्रमुख प्राकृतिक तत्व शामिल हैं, जो मसूड़ों को मजबूत बनाने और ओरल हाइजीन बनाए रखने में मदद करते हैं। आईडीए की सील ऑफ एक्सेप्टेंस इसे और भरोसेमंद बनाती है।
रोकथाम के आसान और प्रभावी उपाय
दिन में दो बार ब्रश करें बेहतर हो कि डाबर रैड पेस्ट जैसे हर्बल विकल्प का उपयोग करें।
फ्लॉसिंग करें, ताकि दांतों के बीच फंसा प्लॉक निकल सके।
ब्रश करते समय सही तकनीक अपनाएं और समय-समय पर प्रोफेशनल क्लीनिंग करवाएं।
फल, सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार लें।
हर्बल माउथवॉश से कुल्ला करें और धूम्रपान/शराब से दूर रहें।
इन उपायों को अपनाकर मसूड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है और ओरल हेल्थ संबंधी गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है।
मसूड़ों की बीमारियों को न करें अनदेखा, समय पर पहचान और आयुर्वेदिक देखभाल से बड़े खतरे टल सकते हैं
