भारत में पहली बार भोपाल में स्थापित हुई कोरोवेंटिस कोरोफ़्लो हृदय जांच प्रणाली

भोपाल बना उन्नत माइक्रोवैस्कुलर कार्डियक डायग्नोस्टिक्स का राष्ट्रीय केंद्र
भोपाल। भारत में हृदय रोगों के निदान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज हुई है। वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. पंकज मनोरिया ने बताया कि उनके अस्पताल में कोरोवेंटिस कोरोफ्लो कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम स्थापित किया गया है। यह भारत का पहला दस्तावेज इंस्टॉलेशन और पहला दस्तावेज केस है, जिसकी पुष्टि एबॉट कंपनी द्वारा की गई है। यह तकनीक अब तक ‘इनविज़िबल’ मानी जाने वाली माइक्रोवैस्कुलर हार्ट डिजीज की सटीक पहचान में क्रांतिकारी साबित होगी।
एंजियोग्राफी की सीमाएँ अब होंगी खत्म
डॉ. मनोरिया ने समझाया कि पारंपरिक एंजियोग्राफी केवल बड़ी धमनियों के ब्लॉकेज दिखा पाती है, लेकिन यह अत्यंत पतली माइक्रोवैसल्स को प्रदर्शित नहीं कर सकती। कई मरीजों में एंजाइना बार-बार होने के बावजूद उनकी एंजियोग्राफी सामान्य आती है। ऐसे मामलों में निदान करना बेहद कठिन हो जाता था।
कोरोफ़्लो कैसे काम करती है?
यह एक एडवांस्ड इनवेजिव हृदय जांच तकनीक है।
एंजियोग्राफी के दौरान एक विशेष वायर माइक्रोवैसल्स में डाला जाता है।
इसके माध्यम से फ्लो, रेजिस्टेंस और माइक्रोवैस्कुलर फंक्शन के पैरामीटर्स मापे जाते हैं।
धीमा माइक्रोवैस्कुलर फ्लो होने पर डॉक्टर माइक्रोवैस्कुलर डिसफंक्शन का सटीक निदान कर सकते हैं।
लंदन से विशेषज्ञ की प्रतिक्रिया
लंदन स्थित इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संदीप कालरा ने कहा कि माइक्रोवैस्कुलर एंजाइना दुनिया की सबसे कम पहचानी जाने वाली हृदय समस्याओं में से एक है। कोरोफ़्लो वैज्ञानिक और मापनीय डेटा प्रदान करती है, जिससे वह मरीज भी सही निदान पा सकेंगे जिन्हें वर्षों से स्पष्ट रिपोर्ट नहीं मिल पाती थी।
भोपाल ने हासिल की राष्ट्रीय अग्रणी स्थिति
कोरोफ़्लो प्रणाली FFR, CFR, IMR और माइक्रोवैस्कुलर फ्लो जैसे उन्नत हृदय पैरामीटर्स को भी मापती है। इसके इंस्टॉलेशन के साथ भोपाल अब देश के चुनिंदा शहरों में शामिल हो गया है जहाँ अत्याधुनिक माइक्रोवैस्कुलर कार्डियक असेसमेंट उपलब्ध है। यह तकनीक भारतीय कार्डियोलॉजी क्षेत्र के लिए परिवर्तनकारी कदम मानी जा रही है।

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