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लेबनान में युद्ध से परेशान, 44 साल बाद भारत लौटने की सोच रहे एलनगोवन

बेरूत। 44 साल से लेबनान में रह रहे एस. एलनगोवन अब देश छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। उन्होंने कहा, “पहली बार लेबनान छोड़ने का विचार कर रहा हूं। यहां अब शांति की उम्मीद नहीं है। सब कुछ बेचकर भारत लौटना चाहता हूं।” एलनगोवन, जो मूल रूप से चेन्नई (तमिलनाडु) के निवासी हैं, 1980 में बेहतर भविष्य की तलाश में बेरूत पहुंचे थे। उन्होंने मिडिल ईस्ट के ‘स्विट्जरलैंड’ माने जाने वाले लेबनान में एक सफल बिजनेस खड़ा किया, लेकिन आज हालात ऐसे हो गए हैं कि उन्हें यहां से जाना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है।

महंगाई और युद्ध ने बिगाड़े हालात

एलनगोवन का कहना है कि उन्होंने 1989 के गृहयुद्ध और 2006 के इजराइल-लेबनान युद्ध का सामना किया, लेकिन मौजूदा संघर्ष कहीं अधिक खतरनाक और निराशाजनक है। “हर तरफ धमाकों की आवाजें गूंजती हैं। लेबनान की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है और कारोबार करना बेहद मुश्किल हो गया है।”

उन्होंने बताया कि उनका परिवार भी अब बिखर रहा है। “मेरी पत्नी श्रीलंकाई तमिल हैं, और हमारे तीन बच्चे हैं। बेटा भारत में स्टॉक मार्केट से जुड़ा है, जबकि बेटी एनजीओ में काम करती है। बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है।”

भारतीयों के लिए मुश्किल हो रहा लेबनान में रहना

एलनगोवन के अनुसार, लेबनान में करीब 3,000 भारतीय बसे हुए हैं। कई भारतीय अब युद्ध की वजह से भारत लौटने का मन बना रहे हैं, लेकिन फ्लाइट्स महंगी होने और एयरस्पेस बंद होने के कारण वे लेबनान में ही फंसे हैं। “मैंने यहां शादी की और अपना बिजनेस खड़ा किया, लेकिन हर युद्ध हमारी मेहनत पर पानी फेर देता है। इस बार भी वैसा ही हो रहा है। अब सोच रहा हूं कि फैक्ट्री और घर बेचकर चेन्नई या पुडुचेरी में बस जाऊं।”

एम्बेसी से मिलती है मदद

एलनगोवन बताते हैं कि हर संकट में भारतीय एम्बेसी उनकी मदद करती है। लेकिन मौजूदा हालात ने उनकी उम्मीदें तोड़ दी हैं। “यह युद्ध जल्द खत्म होता नहीं दिखता, और मैं वह दिन नहीं देखना चाहता जब सब कुछ बर्बाद हो जाए। अब भारत लौटना ही सबसे सही फैसला लगता है।”

निष्कर्ष
लेबनान के बिगड़ते हालात और लगातार बढ़ती अस्थिरता ने वहां बसे भारतीयों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं। एलनगोवन जैसे कई भारतीय अब अपना भविष्य भारत में ही सुरक्षित देख रहे हैं।

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