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अफ़ग़ानिस्तान में बच्चियों की तस्करी का दर्दनाक सच: हज़ार-हज़ार डॉलर में बिक रही हैं मासूम जिंदगियाँ, मुस्लिम देशों की चुप्पी पर उठ रहे सवाल

अफ़ग़ान संकट के बीच मानव तस्करी चरम पर, लड़कियों को बेचा जा रहा है विदेशों में – इस्लामी सहयोग संगठन और अरब देशों की भूमिका पर उठ रहे हैं गंभीर प्रश्न

काबुल/कंधार । अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद उत्पन्न मानवीय संकट ने विकराल रूप ले लिया है। देश में बेरोज़गारी, भुखमरी और असुरक्षा के माहौल के बीच गरीब परिवारों को अपनी बच्चियों को मजबूरी में बेचने तक को विवश होना पड़ रहा है। कई रिपोर्ट्स और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, मासूम अफ़ग़ान बच्चियाँ हज़ार-हज़ार डॉलर में बेची जा रही हैं। ये सौदे कभी शादी के नाम पर, तो कभी घरेलू काम या मानव तस्करी के ज़रिए किए जा रहे हैं।

मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी

यूनाइटेड नेशंस, एमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य संस्थाओं ने अलार्म बजाया है कि अफ़ग़ानिस्तान में बाल विवाह और मानव तस्करी की घटनाएं तेज़ी से बढ़ रही हैं। 8 से 14 वर्ष की बच्चियों को विदेशी खरीदारों को बेचा जा रहा है। यह न केवल मानवता के लिए शर्मनाक है, बल्कि इस्लामी मूल्यों और इंसाफ के भी खिलाफ है।

मुस्लिम देशों की खामोशी पर उठ रहे हैं सवाल

दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय और देशों से यह सवाल पूछा जा रहा है कि अफ़ग़ान मासूमों की इस पीड़ा पर उनकी चुप्पी क्यों? अरब देशों के पास खरबों डॉलर की संपत्ति है, वे मस्जिदें, मदरसे और इस्लामी प्रचार में भारी निवेश कर रहे हैं, लेकिन पड़ोसी मुस्लिम देश अफ़ग़ानिस्तान में हो रहे इस अत्याचार के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
प्राइवेट जेट, लग्ज़री महल और महंगे हथियारों पर अरबों डॉलर खर्च करने वाले इस्लामी देशों की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

OIC (इस्लामिक सहयोग संगठन) की निष्क्रियता

OIC जैसे संगठनों ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर कुछ बयान तो ज़रूर दिए, लेकिन जमीनी स्तर पर राहत या पुनर्वास के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया। जबकि अफ़ग़ानिस्तान में हालात ऐसे हैं कि हज़ारों परिवारों को जीवन यापन के लिए अपनी बच्चियों को गिरवी रखना पड़ रहा है या बेच देना पड़ रहा है।

निष्कर्ष

आज जब अफ़ग़ानिस्तान की बेटियाँ वैश्विक समुदाय की मदद की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रही हैं, तब मुस्लिम देशों की जिम्मेदारी बनती है कि वे केवल धार्मिक प्रचार तक सीमित न रहें, बल्कि ज़रूरतमंदों की वास्तविक मदद करें। यह समय है जब “उम्मत” की भावना को केवल नारों तक नहीं, बल्कि ठोस मानवीय कार्यों के रूप में साकार किया जाए।

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