
साउथ अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने गैंडों की सींग पर लगाया रेडियोएक्टिव पदार्थ
जोहेनसबर्ग । इंसान अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है। वह इतना गिर जाता है कि बेजुबान जानवरों को अपने फायदे के लिए मार देता है। कई ऐसे देश हैं, जहां हर रोज जंगली जानवरों को उनकी चमड़ी, हड्डी, सींग या दांतों के लिए मार दिया जाता है। गैंडों को ही ले लीजिए। उनकी सींग की तस्करी आम बात है। सालों से सैकड़ों गैंडे सींग के लिए मारे जा चुके हैं लेकिन अब साउथ अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने गैंडे की तस्करी के लिए बड़ा कदम उठाया है। अब अगर वो गैंडे की सींग छुएंगे, तो वह वहीं मर जाएंगे!
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साउथ अफ्रीका के एक वाइल्डलाइफ रिजर्व में करीब 20 गैंडों की सींग में रेडियोएक्टिव पदार्थ लगाया है। ये रेडियोएक्टिव पदार्थ इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। अगर गैंडे की सींग के साथ इस पदार्थ का सेवन किसी इंसान के कर लिया, तो उसकी मौत भी हो सकती है। इस पदार्थ से तस्करी हुए सींग का पता भी लगाया जा सकता है। जोहेनसबर्ग के विट्स यूनिवर्सिटी के निदेशक जेम्स लार्किन और उनकी टीम ने गैंडों की सींड पर इस पदार्थ लगाया है। उन्होंने कहा कि साउथ अफ्रीका में हर 20 घंटे में सींग के लिए एक गैंडे की हत्या की जाती है। इस पदार्थ का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा कि इससे गैंडों की सींग की कीमत खरीददार की नजर में कम करना, तस्करी होने वाली सींग को आसानी से पकड़ना है।
उन्होंने बताया कि राइनो के हॉर्न ब्लैक मार्केट में सोने, चांदी, हीरे से ज्यादा महंगे बिकते हैं। इनका इस्तेमाल एशिया में कई दवाओं के लिए होता है, या फिर लोग गिफ्ट के तौर पर गैंडे का सींग भी दूसरों को देते हैं। साउथ अफ्रीका के लिंपोपो प्रांत में गैंडों के अनाथालय के कर्मी ऐरी वैन डेवेंटर ने कहा कि शायद ये तरीका तस्करी रोकने में कारगर साबित होगा। बता दें कि वैज्ञानिकों ने गैंडे की सींग में रेडियो आइसोटोप्स को इंजेक्ट कर दिया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल करीब 500 गैंडों को स्लॉटर किया गया था। ये आइसोटोप्स राइनो के लिए खतरनाक नहीं हैं।