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श्रीलंका में मार्क्सवादी नेता की जीत: चीन ने बढ़ाया अपना प्रोपेगेंडा

*बीजिंग** – श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में 56 वर्षीय मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके की जीत ने चीन में उत्साह की लहर पैदा कर दी है। चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि दिसानायके के सत्ता में आने से श्रीलंका की भारत पर निर्भरता कम होगी, जिससे चीन के साथ संबंध और मजबूत होंगे।

2022 में श्रीलंका के गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट के दौरान चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के खिलाफ कई आवाजें उठी थीं। अब, जब नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के दिसानायके को देश का नया राष्ट्रपति चुना गया है, चीन को उम्मीद है कि दोनों देशों के संबंधों में मजबूती आएगी और बीआरआई प्रोजेक्ट्स में तेजी आएगी।

चीन के सरकारी अखबार *ग्लोबल टाइम्स* में छपे एक लेख में, विशेषज्ञों ने कहा है कि दिसानायके की विचारधारा चीन के साथ मेल खाती है और उनकी पार्टी के सत्ता में आने से दोनों देशों के संबंधों में सुधार होगा। लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति भारत पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास करेंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नई सरकार देश की आर्थिक स्थिति में सुधार और जनजीवन की बेहतरी को प्राथमिकता देगी। चीन श्रीलंका को बीआरआई में एक महत्वपूर्ण देश मानता है और उसने श्रीलंका में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, जैसे बंदरगाहों में, भारी निवेश किया है, जिससे वहां के लोगों को लाभ मिल रहा है।

हालांकि, नई सरकार को भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। एनपीपी पार्टी के प्रवक्ता बिमल रत्नायके ने आश्वासन दिया है कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा, यह दर्शाते हुए कि पार्टी भू-राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता में नहीं पड़ेगी।

इस प्रकार, दिसानायके की जीत से श्रीलंका में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है, जबकि भारत के साथ संबंधों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

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