तीन धर्मों का पवित्र शहर येरुशलम: दशकों से जारी है धार्मिक और राजनीतिक संघर्ष
येरुशलम। येरुशलम, दुनिया के सबसे पवित्र और विवादित शहरों में से एक, तीन प्रमुख धर्मों—ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। इस छोटे से शहर का हर हिस्सा धार्मिक आस्था और इतिहास की कहानियों से भरा हुआ है। जहां यह शहर धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, वहीं कई दशकों से चल रहे राजनीतिक संघर्ष का मैदान भी बना हुआ है।
तीनों धर्मों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल
येरुशलम का पुराना हिस्सा, जिसे ओल्ड सिटी कहा जाता है, चारों ओर से किले की दीवारों से घिरा हुआ है और यहां तीनों धर्मों के प्रमुख धार्मिक स्थल मौजूद हैं।
ईसाई धर्म के लिए पवित्र स्थल: चर्च ऑफ द होली सेपल्कर वह स्थान है, जहां ईसाई मान्यता के अनुसार, यीशु मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं उनका पुनरुत्थान हुआ था। दुनियाभर से ईसाई श्रद्धालु यहां प्रार्थना करने आते हैं और इसे अपने धर्म का सबसे पवित्र स्थल मानते हैं।
इस्लाम धर्म का तीसरा सबसे पवित्र स्थान: मुसलमानों के लिए येरुशलम में डोम ऑफ द रॉक और अल-अक्सा मस्जिद का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। इस्लामी मान्यता के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से येरुशलम की रात की यात्रा की थी और यहीं से वे जन्नत की ओर गए थे। इस कारण यह स्थल मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत पवित्र है।
यहूदी धर्म के लिए पवित्र दीवार: यहूदियों के लिए वेस्टर्न वॉल (पश्चिमी दीवार) का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। यह उनके प्राचीन मंदिर का अवशेष है और ऐसा माना जाता है कि यहीं पर इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने का प्रयास किया था। यहूदी यहां आकर प्रार्थना करते हैं और इसे अपने इतिहास का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
1967 के युद्ध के बाद बढ़ा तनाव
1967 के छह-दिवसीय युद्ध के बाद, इजरायल ने पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया और यहां स्थित अल-अक्सा मस्जिद का प्रबंधन एक इस्लामी समूह को सौंप दिया गया, लेकिन सुरक्षा की जिम्मेदारी इजरायली सेना के हाथों में बनी रही। इस निर्णय ने येरुशलम में धार्मिक और राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया। मुस्लिम समुदाय चाहता था कि मस्जिद के पवित्र क्षेत्रों में केवल मुसलमानों को ही जाने की अनुमति दी जाए, जबकि इजरायल ने अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी यहां आने की अनुमति दी, जिससे विवाद और गहरा हो गया।
विवाद का समाधान अभी भी अधर में
येरुशलम की स्थिति पर दशकों से कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। दुनिया भर के नेताओं ने इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की है, लेकिन धार्मिक और राजनीतिक जटिलताएं इसे और कठिन बनाती रही हैं। येरुशलम को लेकर जारी संघर्ष सिर्फ इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस किया जाता है।
येरुशलम का भविष्य: क्या होगा समाधान?
येरुशलम को लेकर लंबे समय से विवाद जारी है और इसे लेकर दुनिया भर की निगाहें टिकी हुई हैं। धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर उठते सवालों ने येरुशलम को एक संवेदनशील मुद्दा बना दिया है। हालांकि, अब भी येरुशलम की स्थिति को लेकर कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है।
निष्कर्ष
येरुशलम एक ऐसा शहर है, जो न केवल तीन प्रमुख धर्मों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि राजनीतिक और धार्मिक संघर्ष का प्रतीक भी है। यहां के पवित्र स्थल हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, लेकिन इसके साथ ही यह शहर दशकों से चले आ रहे विवाद और संघर्ष का भी साक्षी है। इस ऐतिहासिक शहर का भविष्य क्या होगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि येरुशलम की स्थिति पर कोई भी निर्णय न केवल इजरायल और फिलिस्तीन, बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित करेगा।