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भोपाल में मनाया गया शून्य छाया दिवस, छात्रों और आम नागरिकों ने देखा दुर्लभ खगोलीय दृश्य

भोपाल, ।  आंचलिक विज्ञान केंद्र, भोपाल में शुक्रवार को एक दुर्लभ खगोलीय घटना ‘शून्य छाया दिवस’ का आयोजन किया गया। इस दिन, सूर्य दोपहर के समय किसी विशेष अक्षांश वाले स्थान के ठीक ऊपर आ जाता है, जिससे खड़ी वस्तुओं की छाया कुछ समय के लिए पूरी तरह गायब हो जाती है। यह घटना भोपाल जैसे स्थान (अक्षांश 23.25° उत्तर) पर साल में दो बार देखने को मिलती है। इस वर्ष का पहला शून्य छाया दिवस 13 जून 2025 को दोपहर 12:20 बजे अनुभव किया गया। इस अवसर पर विज्ञान केंद्र परिसर में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें विभिन्न स्कूलों के करीब 60 विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक, गृहणियाँ और आमजन शामिल हुए।

क्या है शून्य छाया दिवस?

शून्य छाया दिवस (Zero Shadow Day) वह खगोलीय क्षण होता है जब सूर्य किसी स्थान के ठीक ऊपर आ जाता है और खड़ी वस्तु की छाया पूरी तरह गायब हो जाती है। यह घटना केवल उन्हीं स्थानों पर होती है जो कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित होते हैं।

विज्ञान केंद्र में हुई रोचक गतिविधियाँ:

सौर गति प्रदर्शनी किट: कार्यक्रम में सूर्य की उत्तर-दक्षिण दिशा में गति को समझाने के लिए एक विशेष किट का प्रदर्शन किया गया, जिससे उपस्थित दर्शकों को विषुव, संक्रांति और शून्य छाया दिवस की अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली।

छाया माप प्रयोग: एक ऊर्ध्वाधर खंभे की छाया को ग्राफ पेपर पर लगातार मापा गया, जिससे यह सिद्ध किया गया कि कैसे छाया की लंबाई समय के साथ बदलती है और दोपहर के शिखर पर वह पूरी तरह लुप्त हो जाती है। ज्यामितीय आकृतियों की छायाएँ: सूर्य द्वारा जमीन पर पड़ने वाली विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों की छायाओं की भी निरंतर निगरानी की गई ताकि न्यूनतम छाया या ‘शून्य छाया’ की स्थिति को सटीक रूप से चिन्हित किया जा सके।

शैक्षणिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण

यह आयोजन न केवल छात्रों के लिए विज्ञान की एक जीवंत प्रयोगशाला सिद्ध हुआ, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी खगोल विज्ञान की बुनियादी अवधारणाओं को समझने का बेहतरीन अवसर साबित हुआ। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि पारंपरिक खगोलशास्त्र और आधुनिक विज्ञान के बीच कितनी गहरी समानताएं हैं।

पंचांग और शास्त्रों की पुष्टि भी

शून्य छाया दिवस जैसी घटनाएं यह भी दर्शाती हैं कि भारतीय पंचांग और खगोलशास्त्र की गणनाएँ अत्यंत सटीक होती हैं, जिससे आज भी वैज्ञानिक अनुसंधान को एक दिशा मिलती है। इस अवसर ने प्रतिभागियों को आकाश की ओर देखने और खगोल विज्ञान में रुचि बढ़ाने का नया दृष्टिकोण प्रदान किया।

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