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गणेशोत्सव में माटी गणेश को अपनाएं: पर्यावरण संरक्षण की प्राचीन परंपरा पर सारिका का जोर

भारतीय पूजा पद्धति में पर्यावरण संरक्षण की गहरी जड़ें हैं, जिसमें प्राचीन काल से ही प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया जाता रहा है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने स्कूली विद्यार्थियों को मिट्टी से गणेश प्रतिमा बनाने का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने कहा कि माटी गणेश जी को विराजित करना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जलसंरक्षण की जिम्मेदारी निभाने का महत्वपूर्ण कदम है।

सारिका ने बताया कि प्राचीन काल से मिट्टी की मूर्तियों का विसर्जन हमारी नदियों की पवित्रता को बनाए रखने में मदद करता आया है। लेकिन आजकल जहरीले रसायनों और अघुलनशील पदार्थों से बनी मूर्तियाँ जल पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियाँ लंबे समय तक जल में अघुलनशील रहती हैं और इन पर लगे जहरीले रंग जलीय जीवों के लिए घातक सिद्ध होते हैं।

मध्यप्रदेश शासन और एप्को द्वारा चलाए जा रहे अभियान के तहत सारिका ने मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं के उपयोग को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने विद्यार्थियों को मिट्टी की पर्यावरण मित्रता का संदेश गीत के माध्यम से दिया और कहा, “माटी गणेश सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि इसमें पर्यावरण बचाने का संदेश छिपा है। इसे अपनाकर हम ईश्वर की बनाई इस प्रकृति और पर्यावरण को संरक्षित करने में अपना व्यक्तिगत योगदान दे सकते हैं।”

आगामी गणेशोत्सव के दौरान मिट्टी की प्रतिमाओं का उपयोग कर नदियों और जलस्रोतों की शुद्धता बनाए रखने में भागीदार बनें।

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