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एम्स भोपाल में ट्रांसकैथेटर माइट्रल वाल्व परफोरेशन बंद करने की दुर्लभ प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी, भारत में दूसरी बार

भोपाल । एम्स भोपाल ने उन्नत हृदय रोग उपचार में एक और मील का पत्थर हासिल किया है। हाल ही में, यहां की कार्डियोलॉजी टीम ने भारत में दूसरी बार ट्रांसकैथेटर माइट्रल वाल्व परफोरेशन बंद करने की दुर्लभ प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह के नेतृत्व में की गई यह प्रक्रिया मेडिकल क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

**18 वर्षीय मरीज का हुआ सफल इलाज** 
एम्स भोपाल के कार्डियोलॉजी ओपीडी में 18 वर्षीय युवक थकान और सांस फूलने की शिकायत लेकर आया। पहले से ही माइट्रल वाल्व में लीकेज की समस्या से जूझ रहे इस युवक को दूसरे अस्पतालों में सर्जरी की सलाह दी गई थी। यहां पर वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. भूषण शाह ने मरीज की ईकोकार्डियोग्राम (ईसीएचओ) से जांच की। इस दौरान रूमेटिक हृदय रोग, संक्रमण या अन्य किसी असामान्यता के कोई संकेत नहीं मिले।

आगे की जांच में, 3D ट्रांसइसोफेगल इकोकार्डियोग्राफी (TEE) का उपयोग कर माइट्रल वाल्व की गहराई से मैपिंग की गई। इस प्रक्रिया में यह पता चला कि लीकेज वाल्व के बाहरी हिस्से से हो रहा था, जो एक दुर्लभ स्थिति है और सामान्यतः सर्जरी की आवश्यकता होती है।

**कम उम्र के कारण बिना सर्जरी का लिया फैसला** 
मरीज की कम उम्र को ध्यान में रखते हुए, डॉ. भूषण शाह और उनकी टीम ने सर्जरी के बजाय निटिनॉल डिवाइस का उपयोग कर इस समस्या का समाधान किया। यह प्रक्रिया एक न्यूनतम इनवेसिव ट्रांसकैथेटर विधि द्वारा की गई, जिसमें डॉ. आशीष जैन और एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. हरेश कुमार की टीम का भी सहयोग रहा।

**एम्स भोपाल की उन्नत चिकित्सा क्षमताओं का प्रमाण** 
एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने इस उपलब्धि की सराहना करते हुए कहा कि यह भारत में दूसरी बार ऐसी प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की गई है। उन्होंने इसे एम्स भोपाल की कार्डियक टीम की विशेषज्ञता और उन्नत उपचार प्रदान करने की प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया। 

**मरीज को जल्द मिली छुट्टी** 
प्रक्रिया के बाद मरीज की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ और अगले ही दिन उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस सफलता ने एक बार फिर एम्स भोपाल की उच्चस्तरीय चिकित्सा क्षमताओं और जोखिम कम करने की प्रतिबद्धता को साबित किया है।


यह प्रक्रिया न केवल एम्स भोपाल के लिए बल्कि पूरे भारत के चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जहां जटिल हृदय समस्याओं का बिना सर्जरी के सफल उपचार किया गया है।

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