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भू माफिया की साठगांठ? – भिंड कलेक्टर पर उठे सवाल

भिंड, गोहद। जिले की मौ तहसील में स्थित शासकीय चरनोई भूमि को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है, जिसमें मौ नगर की सर्वे क्रमांक 3168/1, 3184/1, 3162, 3147 रकबा 5 बीघा 9 विश्वा गौचर भूमि को निजी घोषित करने का मामला उजागर हुआ है। स्थानीय लोगों और शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने भू माफिया के साथ मिलकर इस शासकीय चरनोई भूमि को निजी संपत्ति घोषित कर दिया है।

कैसे हुई भूमि निजी?

शिकायतकर्ताओं के अनुसार, 2019 तक यह भूमि शासकीय चरनोई भूमि के रूप में दर्ज थी, लेकिन 2024 में अचानक इसे निजी संपत्ति के तौर पर दर्ज कर दिया गया। बताया गया कि भू माफिया ने 20 साल पहले ही कूटरचना से सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर कर इस भूमि को अपने नाम करा लिया था। इस मामले में तहसीलदार मौ ने शिकायत के आधार पर जांच शुरू की और भू माफिया को नोटिस भेजे, लेकिन उन्होंने नोटिस लेने से मना कर दिया।

भूमि का बाजार मूल्य 10 करोड़ रुपए

उपरोक्त भूमि मौ-श्योंढा रोड से सटी हुई है और इसका वर्तमान बाजार मूल्य लगभग 10 करोड़ रुपए आंका गया है। 2010, 2014 और 2015 के राजस्व रिकॉर्ड में यह भूमि चरनोई के रूप में दर्ज थी। शिकायत में यह भी बताया गया कि इस सर्वे क्रमांक 3168 के आसपास अन्य सर्वे नंबरों में भी लोगों के मकान बने हुए हैं।

फर्जी दस्तावेज़ से हुआ नामांतरण?

शिकायतकर्ताओं का कहना है कि प्रमोद कुमार और अशोक कुमार, जो भू-माफिया के रूप में सक्रिय हैं, ने शासकीय भूमि को हड़पने के लिए कूटरचित दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस भूमि को फर्जी विक्रय पत्र के आधार पर अपने नाम करा लिया और इसे अन्य व्यक्तियों को बेचने की साजिश रच रहे हैं।

तहसीलदार की जांच और कलेक्टर का हस्तक्षेप

शिकायत के बाद तहसीलदार मौ ने जांच की, जिसमें सर्वे क्रमांक 3168 को आम रास्ता पाया गया। तहसीलदार ने इस आधार पर भूमि को पुनः शासकीय चरनोई घोषित कर दिया। लेकिन, भू माफिया ने अपने रिश्तेदार एसडीएम के माध्यम से कलेक्टर से सांठ-गांठ कर तहसीलदार के आदेश को निगरानी में ले लिया और कलेक्टर ने इसे फिर से निजी संपत्ति घोषित कर दिया।

कलेक्टर पर गंभीर आरोप

अब सवाल उठता है कि जब 2019 तक यह भूमि शासकीय चरनोई थी, तो कलेक्टर को भू माफिया ने ऐसे कौन से दस्तावेज़ दिखाए जिससे यह निजी भूमि बन गई? क्या कलेक्टर के पास एक पीठासीन अधिकारी के आदेश को खारिज करने का अधिकार है? इस पूरे मामले ने स्थानीय स्तर पर भारी चर्चा को जन्म दिया है।

कलेक्टर की भूमिका संदिग्ध

जनता के बीच यह चर्चा का विषय बन गया है कि कलेक्टर ने भू माफिया के साथ मिलकर यह खेल खेला है। यह मामला केवल सरकारी भूमि की हेराफेरी का नहीं है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है। अब लोग मांग कर रहे हैं कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

इस घटना ने जिला प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह मामला एक बड़े घोटाले का रूप ले सकता है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है और जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं।

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