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मध्यप्रदेश BJP में अंदरूनी खींचतान तेज, दिग्गज नेताओं को ‘हाशिये’ पर भेजने की कोशिशों ने बढ़ाई बेचैनी

BJP में बढ़ती गुटबाज़ी और दिग्गज नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोप, संगठन-सत्ता समन्वय के लिए नई व्यवस्था लागू

भारतीय जनता पार्टी, जिसे कभी अनुशासन और संगठन-शक्ति की मिसाल कहा जाता था, आज उसी गुटबाजी और खेमेबाज़ी से जूझ रही है, जिसकी आलोचना वह कांग्रेस में किया करती थी। सत्ता और संगठन के भीतर बढ़ते मतभेद, दिग्गज नेताओं के कद को सीमित करने की कोशिशें, और प्रभावशाली नेताओं के खिलाफ कथित ‘साजिश’ ने मध्यप्रदेश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। हालात इतने बदले हैं कि अब पार्टी को सत्ता-संगठन समन्वय के लिए विशेष व्यवस्था तक बनाना पड़ रही है।

कांग्रेस वाली बुराई’ अब BJP में भी गुटबाजी से लेकर दिग्गजों की आवाज़ दबाने तक

भाजपा के शुरुआती दौर में भी गुट बनते थे, पर उस समय हाईकमान एक गुट को सीमित कर स्थिति संभाल लेता था। आज मामला उल्टा है सत्ता स्थायी हो गई है, सत्ता का अहंकार और खींचतान स्थायी व्यवहार।
सबसे बड़ा आरोप यह है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व खुद ही दिग्गज नेताओं का प्रभाव कम करने की कोशिशों को हवा दे रहा है, ताकि कोई भी नेता इतना मजबूत न हो सके कि वह केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती दे।

शिवराज के दौर से शुरू हुआ शक्ति-संतुलन का संघर्ष

जब शिवराज सिंह चौहान सत्ता में मजबूत हुए, तो उन्होंने संगठन और संघ के कई वर्गों पर पकड़ बना ली। हाईकमान ने उनका कद घटाने की कोशिश की। लेकिन उनकी राजनीतिक पकड़ आज भी दिल्ली के लिए चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि हाईकमान ने प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गजों को दिल्ली से वापस प्रदेश भेजा, ताकि शिवराज का विकल्प तैयार हो सके। पर सच्चाई यह है कि तोमर को स्पीकर बनाकर वाणी बंद कर दी गई, कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर तक सीमित करने की कोशिशें तेज,  प्रहलाद पटेल के खिलाफ लगातार संगठनात्मक हमले। इसके बावजूद ये नेता अपनी जमीन पर प्रभावशाली बने हुए हैं।

CM मोहन यादव भी दिग्गजों से खतरा महसूस कर रहे?

दूसरी कतार से उठाकर मुख्यमंत्री बनाए गए मोहन यादव अब खुद दिग्गज नेताओं से राजनीतिक खतरा महसूस कर रहे हैं। उनकी राजनीतिक क्षमता सवालों में तोमर, पटेल, विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव, राकेश सिंह जैसे नेता उनके लिए चुनौती, यही कारण है कि दिल्ली में लगातार उन दिग्गज नेताओं के खिलाफ शिकायतें भेजी जाती हैं, जिन्हें वर्तमान नेतृत्व पसंद नहीं करता।

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