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पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: फर्जी SC-ST एक्ट केसों पर लगाम लगाने की दिशा में बड़ा कदम

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के दुरुपयोग पर अहम टिप्पणी करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई टिप्पणी या कथन सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया गया है, तो उसे एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

क्या कहा कोर्ट ने?
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी यदि सार्वजनिक स्थान पर नहीं की गई हो, और उसका उद्देश्य अपमान करना नहीं हो, तो वह एससी-एसटी एक्ट की धाराओं के तहत दंडनीय नहीं होगी। यह फैसला उन मामलों में बड़ी राहत लेकर आया है, जहां निजी दुश्मनी या झूठे आरोपों के चलते इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा था।

पृष्ठभूमि और केस का संदर्भ
इस फैसले की पृष्ठभूमि में एक ऐसा मामला था, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे जातिसूचक शब्द कहे। लेकिन जांच में सामने आया कि यह कथन एक बंद कमरे या निजी स्थान पर हुआ था, जहां न तो कोई सार्वजनिक मौजूदगी थी और न ही कोई गवाह। कोर्ट ने इस आधार पर एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि एससी-एसटी एक्ट की मूल भावना का सम्मान करते हुए यह भी जरूरी है कि इसका दुरुपयोग रोका जाए।

फैसले का महत्व

दुरुपयोग पर रोक: यह फैसला उन झूठे मामलों पर अंकुश लगाने में मदद करेगा जो व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते दर्ज किए जाते हैं।

कानूनी व्याख्या में स्पष्टता: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘सार्वजनिक स्थान’ की उपस्थिति इस कानून के तहत अपराध की श्रेणी तय करने में अहम भूमिका निभाती है।

न्यायिक संतुलन: कोर्ट ने इस फैसले के जरिए कानून की भावना और निर्दोष व्यक्तियों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है।


निष्कर्ष
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का यह फैसला एससी-एसटी एक्ट की आड़ में फर्जी मामलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर लगाम लगाने का एक सकारात्मक प्रयास है। इससे कानून का सम्मान बना रहेगा और निर्दोष लोगों को बेवजह की कानूनी कार्यवाही से राहत मिलेगी।

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