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ग्वालियर-भिंड हाईवे: घोषणाओं की चमक और जमीनी सच्चाई की धूल

छीमका, भिंड ।  आज फिर ग्वालियर-भिंड हाईवे ने दो मासूम जिंदगियों को निगल लिया। ग्राम छीमका के पास सब्जियों से लदे एक केंटर ने दो युवकों को बेरहमी से कुचल दिया। यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता और नेताओं की झूठी घोषणाओं की कीमत है, जो आम जनता को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है।

हाईवे की स्थिति: मौत का न्यौता

ग्वालियर-भिंड हाईवे वर्षों से गड्ढों, जर्जर सड़कों और लापरवाह निर्माण का प्रतीक बना हुआ है। यह हाईवे अब “खूनी हाईवे” के नाम से जाना जाने लगा है। 719 गाँवों को जोड़ने वाला यह मार्ग अब मौत का गलियारा बन चुका है।
वादों की हकीकत: क्या सिर्फ चुनावी जुमले थे?

1. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की घोषणा
वादाः हाईवे के चौड़ीकरण और आधुनिकीकरण का आश्वासन।
हकीकतः आज भी सड़क गड्ढों से भरी, दुर्घटनाओं की वजह बनी हुई है। कोई ठोस कार्य नहीं हुआ।

2. सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की घोषणा
वादाः मंचों से कई बार हाईवे को उच्च स्तरीय बनाने की बात।
हकीकतः केवल भाषणों में ही विकास, धरातल पर सन्नाटा।

वर्तमान सांसद संध्या राय के दावे

वादाः चुनावों में हाईवे को बेहतर बनाने का वादा।
हकीकतः न सड़क बनी, न जवाब मिला। जनता आज भी ठगी सी खड़ी है।

जनता के सवाल, सरकार से जवाब चाहिए

1. क्या गडकरी, सिंधिया और संध्या राय की घोषणाएं सिर्फ चुनावी छलावा थीं?
2. अब तक कितनी बार इस परियोजना का बजट स्वीकृत हुआ? और कितनी बार टेंडर निकाले गए?
3. क्या सरकार इस सड़क के निर्माण की कोई निश्चित समयसीमा तय करेगी?
4. क्या इन घोषणाओं की विफलता के लिए किसी नेता की जवाबदेही तय की जाएगी?
5. क्या यह खूनी तांडव तब तक चलता रहेगा जब तक हर गांव से एक जनाजा नहीं उठेगा?


चंबल पार हो रहा, लेकिन भिंड ठहरा हुआ क्यों?

जहां इटावा विधायक ने चंबल के पुल से इटावा तक फोरलेन निर्माण कार्य शुरू कर दिया है, वहीं भिंड के जनप्रतिनिधि अब भी सिर्फ “एक पेड़ एक मां” नाम का कार्यक्रम चलाकर” जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।

अब नहीं सहेंगे — जनता बोलेगी, सड़क भी बनेगी

यह मुद्दा केवल सड़क निर्माण का नहीं, जनता की गरिमा और जीवन रक्षा का है।
“व्यवस्था परिवर्तन” का संकल्प अब केवल नारे तक सीमित नहीं रहेगा — यह जन आंदोलन का रूप लेगा।

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