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भोपाल नगर निगम में ट्रांसफर के बाद भी दो अफसरों ने नहीं लिया कार्यमुक्ति, प्रशासनिक अनुशासन पर उठे सवाल

भोपाल, । भोपाल नगर निगम में प्रशासनिक अनुशासन को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा जारी स्थानांतरण आदेश के बावजूद अपर आयुक्त देवेंद्र सिंह चौहान और सहायक आयुक्त एकता अग्रवाल ने अब तक अपने नए पदस्थापन स्थल पर कार्यभार ग्रहण नहीं किया है। इन दोनों अधिकारियों का तबादला 20 जून 2025 को हुआ था, लेकिन 15 दिन बीतने के बाद भी वे अपने वर्तमान पद पर कार्यरत हैं।

सूत्रों के अनुसार, दोनों अधिकारी नगर निगम आयुक्त के करीबी माने जाते हैं, जिसके कारण उनके तबादला आदेश के क्रियान्वयन में देरी हो रही है। इससे प्रशासनिक कार्यप्रणाली और नियमों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

क्या है नियम और क्या हुआ उल्लंघन?

नगरीय प्रशासन विभाग के नियमानुसार, किसी भी स्थानांतरण आदेश के बाद अधिकतम 7 दिनों के भीतर संबंधित अधिकारी को रिलीव होकर नए कार्यस्थल पर योगदान देना अनिवार्य होता है। लेकिन यहां अपर आयुक्त और सहायक आयुक्त दोनों ही अधिकारियों ने 15 दिनों में कोई कार्रवाई नहीं की है, जिससे यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक अनुशासन का उल्लंघन है।


वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं स्थिति असामान्य

नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह स्थिति पूरी तरह असामान्य और नियमों के खिलाफ है। तबादला आदेश के बाद कार्यभार न लेना गंभीर अनुशासनहीनता है। उच्च स्तर पर इसकी शिकायत की जा सकती है और कार्रवाई भी होनी चाहिए।
कमिश्नर की चुप्पी पर उठ रहे सवाल

जब इस विषय में नगर निगम कमिश्नर से संपर्क किया गया, तो कोई आधिकारिक बयान नहीं मिला। इससे अटकलों को और बल मिल रहा है कि इन अधिकारियों को कमिश्नर की ‘मौन सहमति’ प्राप्त है।

नगरीय प्रशासन विभाग की नजर में मामला

विभागीय सूत्रों के अनुसार, यह मामला निगरानी में है और यदि प्राथमिक जांच में नियमनुसार उल्लंघन पाया गया, तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। ऐसे मामलों में विभागीय अनुशासनात्मक प्रक्रिया के तहत शोकॉज नोटिस, वेतन रोके जाने या स्थानांतरण आदेश को जबरन लागू कराने जैसी कार्यवाही की जा सकती है।

बढ़ती चर्चा, घटती व्यवस्था

नगर निगम के कर्मचारियों और अन्य अधिकारियों के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। कई कर्मचारी प्रशासनिक पक्षपात और नियमों की अनदेखी को लेकर असंतोष जता रहे हैं। यह मामला न केवल नगर निगम की प्रशासनिक साख को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य ईमानदार अधिकारियों के लिए भी नकारात्मक उदाहरण बनता जा रहा है।

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