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इटावा कांड कथा”: जब धर्म की आड़ में छल हुआ

इटावा (उत्तर प्रदेश) । अच्छलदा, बकेवर क्षेत्र में हाल ही में एक कथावाचक पर गंभीर आरोप लगने से धार्मिक गलियारों में हलचल मच गई है। आरोप है कि कथा मंच पर विराजमान कथावाचक ने एक महिला के साथ कथित तौर पर अशोभनीय व्यवहार किया, जिसके बाद ग्रामवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया।

प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, उक्त कथावाचक पहले नवबौद्ध विचारधारा से जुड़े थे और बुद्ध कथा करते थे, लेकिन मांग में कमी आने पर कथित रूप से उन्होंने “भागवत कथा” का रुख किया। सूत्र बताते हैं कि यह केवल धार्मिक विषयांतरण नहीं था, बल्कि सामाजिक पहचान में भी कथावाचक ने छद्म प्रस्तुत किया।

ग्रामीणों के अनुसार, कथावाचक ने न केवल मंच का दुरुपयोग किया बल्कि कथावाचन के नाम पर महिलाओं के साथ अमर्यादित व्यवहार किया। जब एक महिला ने विरोध जताया और गाँव वालों को जानकारी दी, तो कथावाचक ने मंच से ही माफी मांगी, लेकिन मामला यहीं नहीं थमा।

इस घटना के बाद एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ — क्या कुछ कथावाचक धार्मिक मंचों का दुरुपयोग कर रहे हैं?

जातिगत पहचान और फर्जी सरनेम का मामला भी सामने आया

गाँव वालों का दावा है कि कथावाचक ने खुद को ब्राह्मण बताया जबकि उनकी जातीय पृष्ठभूमि कुछ और थी। इस पर सवाल उठते हैं कि क्या धार्मिक मंचों पर वंश, जाति या परंपरा के नाम पर गलत जानकारी देकर आम जनता को गुमराह किया जा रहा है? और यदि ऐसा है, तो इसका जिम्मेदार कौन?

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बीते दो दशकों से इटावा, मैनपुरी और एटा क्षेत्र में कथित कथावाचकों की एक लॉबी सक्रिय है, जो न केवल धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या करती है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक एजेंडा भी साधती है।

निष्कर्ष: धर्म, जाति और मंच की मर्यादा — तीनों जब मिल जाएं तो समाज को दिशा मिलती है। लेकिन जब इनका दुरुपयोग होता है, तो जनता का विश्वास टूटता है। इस घटना ने न केवल कथावाचन पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है, बल्कि उन तमाम ‘धर्म व्यवसायियों’ की पोल खोल दी है, जो पहचान की आड़ में अंधभक्ति से मुनाफा कमा रहे हैं।

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