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दिल्ली विश्वविद्यालय ने हटाया मनुस्मृति पाठ: संस्कृत विभाग के पाठ्यक्रम से “धर्मशास्त्र अध्ययन” में किया संशोधन

दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) ने अपने पाठ्यक्रम से मनुस्मृति (Manusmriti) को हटाने का फैसला लिया है। यह निर्णय विशेष रूप से संस्कृत विभाग के डीएससी पेपर ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ (Dharmashastra Studies) को लेकर किया गया है, जिसमें अब तक मनुस्मृति को “अनुशंसित पाठ्य” (Recommended Text) के रूप में शामिल किया गया था। विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि अब किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को पढ़ाया नहीं जाएगा।

क्या था पुराना पाठ्यक्रम?

धर्मशास्त्र अध्ययन’ नामक पेपर में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति और नारद स्मृति जैसे प्राचीन ग्रंथों को अनुशंसित पाठ्य के रूप में पढ़ाया जाता था। यह पाठ्यक्रम बी.ए. प्रोग्राम संस्कृत ऑनर्स में शामिल था और इसे संस्कृत विभाग द्वारा संचालित किया जाता था।

क्या हुआ अब बदलाव?

नई अकादमिक समीक्षा के तहत पाठ्यक्रम को संशोधित किया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने घोषणा की है कि “अब किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को नहीं पढ़ाया जाएगा”। धर्मशास्त्र अध्ययन पेपर को या तो हटा दिया गया है या उसमें मनुस्मृति के संदर्भ को हटाया गया है।

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

मनुस्मृति एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे लंबे समय से जातिगत भेदभाव और स्त्री विरोधी प्रावधानों को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा है।
इसे पढ़ाने को लेकर छात्र संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों द्वारा समय-समय पर आपत्ति दर्ज की जाती रही है।
विश्वविद्यालय का यह कदम सामाजिक समरसता और आधुनिक शिक्षा मूल्यों की दिशा में एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है।

विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया

दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि “हम समावेशी और समसामयिक शिक्षा के सिद्धांतों को प्राथमिकता दे रहे हैं। पाठ्यक्रमों में उन्हीं विषयों को रखा जाएगा, जो वैज्ञानिक, तर्कसंगत और आधुनिक संवेदनशीलताओं के अनुरूप हों।”

सामाजिक प्रतिक्रिया

कई छात्र संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि जाति व लैंगिक भेदभाव फैलाने वाले ग्रंथों को शिक्षण में स्थान नहीं मिलना चाहिए। वहीं, कुछ परंपरावादी समूहों ने इसे विरासत से दूरी करार देते हुए विरोध भी दर्ज किया है।

निष्कर्ष:

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा मनुस्मृति को पाठ्यक्रम से हटाना एक शिक्षात्मक, सामाजिक और वैचारिक निर्णय है, जो भारतीय विश्वविद्यालयों में नैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार पाठ्यक्रम निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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