
भोपाल में अखिल भारतीय कायस्थ कवि समागम, परंपरा, संस्कृति और काव्य की उजली धारा
भोपाल। राजधानी के दुष्यंत संग्रहालय ने रविवार को साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म के विराट उत्सव का साक्षी बनकर इतिहास रच दिया। यहां आयोजित अखिल भारतीय कायस्थ कवि समागम 2025 न केवल काव्य प्रतिभाओं का महामंच बना, बल्कि कायस्थ समाज की आध्यात्मिक–सांस्कृतिक परंपराओं का भी भव्य प्रदर्शन रहा। कार्यक्रम की विशेषता रही कि इसका आयोजन भगवान श्री चित्रगुप्त जी की अध्यक्षता और मां वीणा वादिनी के मुख्य आतिथ्य में प्रतीकात्मक रूप से किया गया, जिससे पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा और साहित्यिक तेज से आलोकित हो उठा।
देशभर से जुटे 60+ प्रसिद्ध कायस्थ कवि
यह भव्य आयोजन श्रीराम सेवक बुंदेली साहित्य संस्कृति परिषद, भोपाल द्वारा संयोजित किया गया। प्रयागराज, झांसी, ललितपुर, जयपुर, ग्वालियर, डबरा, उज्जैन, रतलाम, विदिशा और भोपाल सहित देशभर से आए 60 से अधिक नामचीन कायस्थ कवियों ने अपनी समृद्ध रचनाओं से कार्यक्रम को अविस्मरणीय बना दिया। केंद्र में रहा समृद्ध साहित्य, काव्य और सामाजिक भाव जिसने उपस्थित श्रोताओं को कभी भाव-विभोर किया, तो कभी परंपरा और संस्कृति से जोड़ते हुए गौरव की अनुभूति भी कराई।
दुष्यंत संग्रहालय में बहती रही साहित्यिक रसधारा
समागम का संचालन देवेश श्रीवास्तव ‘देव’ (अध्यक्ष, भोपाल शाखा), ओ.पी. श्रीवास्तव (सचिव), श्याम श्रीवास्तव ‘सनम’, डबरा (कार्यक्रम संयोजक) तथा मनीष बादल (सह–संयोजक) द्वारा किया गया। देशभर से आए प्रमुख रचनाकार राजेश चंचल, महेश श्रीवास्तव, राजेश श्रीवास्तव, संजय श्रीवास्तव, महेश सक्सेना, अरविंद श्रीवास्तव, मुरलीमनोहर श्रीवास्तव, चंद्रशेखर श्रीवास्तव, मुकेश कबीर, प्रेक्षा सक्सेना, अभिलाषा श्रीवास्तव ‘अनुभूति’, प्रियंका श्रीवास्तव, संगीत सरलकी उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा, ऊर्जा और प्रतिष्ठा प्रदान की।
प्रथम पुष्प स्मारिका चित्रगुप्त चालीसा और विशेषांक का लोकार्पण
समागम के दौरान कई महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का विमोचन हुआ स्मारिका प्रथम पुष्प
श्री चित्रगुप्त चालीसा विशेषांक इस अवसर पर देशभर के 60 से अधिक कवियों को कायस्थ कवि कलम, चित्रगुप्त माला, चित्रगुप्त 2025 सम्मान पत्र, शाल, तथा विशेष स्मृति–चिह्न बैग भेंट कर सम्मानित किया गया।
कायस्थ समाज की साहित्यिक परंपरा को मिला सशक्त मंच
यह अखिल भारतीय समागम केवल एक काव्य-कार्यक्रम नहीं था, बल्कि कायस्थ समाज की विरासत, उसकी सांस्कृतिक पहचान और साहित्यिक परंपरा को नई दिशा देने वाला महत्वपूर्ण आयोजन साबित हुआ। दुष्यंत संग्रहालय में उमड़ा भक्तिभाव, साहित्यिक संवेदना और काव्य के प्रति सम्मान ने इस आयोजन को एक यादगार अध्याय बना दिया।



