इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: ईसाई धर्म अपनाने वालों को नहीं मिलेगा SC आरक्षण, 4 महीने में सभी प्रमाणपत्र रद्द करने के निर्देश

लखनऊ, उत्तर प्रदेश। सामाजिक न्याय और आरक्षण व्यवस्था से जुड़े एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बड़ा निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जो लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जाति (SC) के आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता, और राज्य सरकार को इस संबंध में तुरंत कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं।

संविधान के साथ धोखाधड़ी : जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी

इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी ने साफ कहा कि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था का अस्तित्व ही नहीं है… ऐसे में SC आरक्षण का लाभ लेना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि SC आरक्षण का आधार ऐतिहासिक सामाजिक उत्पीड़न और छुआछूत की प्रथा है, जो ईसाई धर्म में लागू नहीं होती। इसलिए ऐसे लोगों को आरक्षण मिलना न केवल असंवैधानिक है बल्कि वास्तविक हकदारों का नुकसान भी है।

4 महीने में सभी जिलाधिकारियों को जाँच के आदेश

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, विशेषकर सभी जिलाधिकारियों (DMs) को निर्देश दिए हैं कि ईसाई धर्म में परिवर्तित सभी व्यक्तियों के SC प्रमाणपत्रों की तत्काल जाँच की जाए। 4 महीने के भीतर ऐसे सभी प्रमाणपत्र रद्द किए जाएँ। कार्रवाई की रिपोर्ट राज्य सरकार के माध्यम से अदालत में पेश की जाए।

राज्य सरकार हरकत में

इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, जिन लोगों ने धर्म परिवर्तन के बाद भी SC आरक्षण पर नौकरी, प्रमोशन या लाभ लिया है, उनके मामले भी अलग से समीक्षा के लिए चिह्नित किए जाएंगे।

क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?

SC आरक्षण केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म मानने वालों तक सीमित है। ईसाई धर्म छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव को नहीं मानता, इसलिए कानूनी रूप से SC वर्ग लागू नहीं होता। कोर्ट के अनुसार धर्म परिवर्तन के बाद भी SC लाभ लेना लाभ उठाने के उद्देश्य से की गई हेराफेरी माना जाएगा।


आगे क्या?

हजारों प्रमाणपत्रों की बड़े पैमाने पर समीक्षा होगी, अवैध लाभ लेने वालों पर कार्रवाई तय, सरकार को 4 महीने में अदालत को प्रगति रिपोर्ट देनी होगी।

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