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कोविड-19 महामारी में हुई मौतों का महिलाओं पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा

जीवन प्रत्याशा में पुरुष 2.1 तो महिला 3.1 साल से ज्यादा की गिरावट
नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के बाद से जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई है और सामाजिक रूप से वंचित लोगों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा है। एक शोधपत्र के मुताबिक भारत में साल 2019 और 2020 के बीच जीवन प्रत्याशा में 2.6 सालों की गिरावट आई है, जो विकसित देशों से काफी ज्यादा है। एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों 2.1 साल की तुलना में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में 3.1 साल गिरावट ज्यादा थी।
अध्ययन में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 से 2021 एनएफएचएस-5 के आंकड़ों और 14 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के परिवारों का विश्लेषण किया गया है। एनएफएचएस सर्वे दो चरणों में किया गया और अध्ययन में दूसरे चरण के आंकड़ों खासकर 2021 में परिवारों से हुई बातचीत को शामिल किया था। एनएफएचएस में परिवारों से साल 2017 के बाद से उनके किसी सदस्य की मौत के बारे में जानकारी ली गई, जिससे साल 2019-2020 की मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया। पत्र में उल्लेख किया गया है कि जीवन प्रत्याशा में गिरावट युवाओं और 50 से 60 साल वाले लोगों में ज्यादा थी।
अध्ययन में कहा गया है कि भले ही बुजुर्गों की मृत्यु दर ज्यादा थी लेकिन कम उम्र में मरने वालों की संख्या ज्यादा होने से जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई है। शून्य से 19 साल और 60 से 79 साल की महिलाओं की मृत्यु दर ज्यादा होने से उनकी जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई। पुरुषों के लिए यह 40 से 59 साल समूह में था। विकसित देशों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट मुख्य तौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र और खासकर 80 साल से ज्यादा के बुजुर्गों की मृत्यु दर अधिक होने की वजह से थी। लिंगों पर असमान प्रभाव की तरह कुछ सामाजिक समूहों ने भी ज्यादा नुकसान का सामना किया। मुसलमानों की जीवन प्रत्याशा सबसे ज्यादा गिरी। यह साल 2019 के 68.8 साल से कम होकर साल 2020 में 63.4 साल हो गई, जो कि 5.4 साल की गिरावट है। अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों में यह गिरावट क्रमशः 4.1 साल और 2.7 साल रही।
अध्ययन में बताय कि अलग-अलग कारणों से होने वाली मौतों के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं इसलिए यह साफ नहीं है कि सामाजिक समूहों में यह असमानता कोविड के प्रत्यक्ष प्रभाव, लॉकडाउन से जुड़ी परेशानियों के अप्रत्यक्ष प्रभावों अथवा किन्ही और कारणों से है। इनके बीच अंतर करने के लिए और ज्यादा शोध करने की जरूरत है। अन्य पिछड़ी जातियों और हिंदुओं में ‘उच्च जातियों’ की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 1.3 साल की है। मुसलमानों में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में 4.6 साल की गिरावट आई जबकि महिलाओं में यह बढ़कर 6.6 साल रही।
इसी तरह अनुसूचित जाति की महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 4.6 साल की रही, तो पुरुषों के लिए यह सिर्फ 1.1 साल रही। अनुसूचित जनजातियों के पुरुषों के 5.4 साल की जीवन प्रत्याशा में गिरावट के मुकाबले महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 2.7 साल ही रही। अन्य पिछड़ी जातियों और हिंदुओं के उच्च जातियों में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 1.9 साल रही। यह अति पिछड़ी जातियों पुरुषों के लिए 0.7 साल और सवर्ण पुरुषों के लिए 0.9 साल रही है।

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