
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि देश में इस्लामिक शरिया कोर्ट या कोर्ट ऑफ काज़ी के आदेशों की कोई कानूनी मान्यता नहीं है। अदालत ने कहा कि भारत का शासन संविधान द्वारा निर्धारित कानूनों के तहत चलता है, न कि किसी मजहबी संस्था के फरमानों से।
शरिया कोर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शरिया अदालतों और काज़ी कोर्ट की वैधता पर सवाल उठाए। अदालत ने साफ कहा कि शरिया कोर्ट के निर्देश कानूनन बाध्यकारी नहीं हैं और उनके आदेशों का भारतीय न्याय प्रणाली में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह फैसला संविधान की सर्वोच्चता को दोहराते हुए दिया गया है।
भारत का कानून संविधान से चलेगा, मजहबी फरमानों से नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि भारत में सभी नागरिकों को संविधान का पालन करना अनिवार्य है। देश किसी धर्म विशेष की धार्मिक पंचायती व्यवस्था से नहीं चलेगा। जो भी भारत में रहेगा, उसे भारतीय संविधान का सम्मान करना ही होगा।
राष्ट्रीय एकता और कानून का सम्मान सर्वोपरि
इस फैसले ने यह भी संदेश दिया कि व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों से ऊपर उठकर सभी नागरिकों को राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक मूल्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि देश में न्यायपालिका केवल संविधान के तहत संचालित होती है और किसी भी मजहबी संस्था को वैधानिक अधिकार नहीं दिया जा सकता।