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राणा सांगा: वीरता और पराक्रम का प्रतीक, 1518 में इब्राहिम लोदी को धौलपुर युद्ध में हराया

राणा सांगा, जिन्हें महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है, राजपूताना के सबसे वीर योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने 1518 में धौलपुर के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित कर मेवाड़ की शक्ति का लोहा मनवाया। यह युद्ध भारतीय इतिहास में राजपूतों की बहादुरी और कूटनीतिक कौशल का एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है।

धौलपुर का युद्ध (1518): राणा सांगा की विजय

16वीं शताब्दी में इब्राहिम लोदी दिल्ली के तख्त पर बैठा था और पूरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। लेकिन राजपूत शासक राणा सांगा ने उसकी विस्तारवादी नीतियों को चुनौती दी।

युद्ध का प्रमुख कारण:

इब्राहिम लोदी ने राजपूताना पर कब्जा जमाने की कोशिश की।

राणा सांगा ने राजपूत एकता को मजबूत कर मुगलों और लोदी वंश के खिलाफ मोर्चा खोला।

धौलपुर का क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, जिसे जीतने के लिए दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ।


राणा सांगा की रणनीति और जीत:

राजपूतों की संगठित सेना ने युद्ध में अप्रत्याशित बहादुरी दिखाई।

युद्ध में राणा सांगा ने स्वयं नेतृत्व किया और इब्राहिम लोदी की सेना को करारी शिकस्त दी।

इस युद्ध में मिली जीत ने मेवाड़ की प्रतिष्ठा बढ़ा दी और राजपूतों की शक्ति को उत्तर भारत में स्थापित किया।


राणा सांगा: एक अपराजेय योद्धा

राणा सांगा केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी रणनीतिकार भी थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े और भारत में विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ एक मजबूत दीवार की तरह खड़े रहे।

राणा सांगा की प्रमुख उपलब्धियां:

1518: धौलपुर में इब्राहिम लोदी को हराया।

1527: खानवा के युद्ध में बाबर से लोहा लिया।

राजपूत एकता को मजबूत किया और हिंदू संस्कृति की रक्षा की।


राणा सांगा की विरासत

आज भी राणा सांगा की वीरता और बलिदान की गाथाएं इतिहास के पन्नों में अमर हैं। उन्होंने भारत में विदेशी ताकतों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया और राजपूतों की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाया।

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