

एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में दरार की खबरें सामने आ रही हैं। तेदेपा (तेलुगू देशम पार्टी) के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज हैं, जिन्होंने नायडू की लोकसभा स्पीकर पद की मांग को ठुकरा दिया है। इस मुद्दे पर नाराजगी जताते हुए, नायडू ने एनडीए की मीटिंगों से दूरी बना ली है।
सूत्रों के अनुसार, नाराज चंद्रबाबू नायडू फ्लोर टेस्ट में अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिराने का प्रयास कर सकते हैं। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू (जनता दल (यूनाइटेड)) और टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) के पास इतना सामर्थ्य नहीं है कि वे एनडीए का विरोध कर सकें।
यह घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने अपनी मांगें रखी थीं, जिनमें अमित शाह को केबिनेट से बाहर रखने और टीडीपी के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद की मांग शामिल थी। हालांकि, इन मांगों को नजरअंदाज करते हुए, अमित शाह को गृह मंत्रालय दिया गया।
अमित शाह और नरेंद्र मोदी की रणनीति के तहत, जेडीयू और टीडीपी के नेताओं को फिलहाल कोई विरोध करने का साहस नहीं है। इसके चलते, संभावना है कि टीडीपी और जेडीयू के सांसद भाजपा में शामिल हो सकते हैं, जैसा कि पहले एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और शिवसेना के साथ हुआ था।
इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और एनडीए में आंतरिक असंतोष को कुशलता से संभाल रहे हैं। एनडीए गठबंधन की स्थिरता पर यह स्थिति गंभीर सवाल खड़े कर रही है, लेकिन भाजपा नेतृत्व इसे अपने पक्ष में मोड़ने में जुटा हुआ है।
एनडीए में चल रही खींचतान की पटकथा उस समय लिखी गई थी जब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने अपने समर्थन के बदले कुछ शर्तें रखी थीं। इन शर्तों में अमित शाह को कैबिनेट से बाहर करने और टीडीपी को लोकसभा अध्यक्ष का पद देने की मांग प्रमुख थी। अमित शाह को इस बात का अंदेशा था, और तभी से उन्होंने इन दोनों पार्टियों के भविष्य पर नजर रखनी शुरू कर दी थी। आखिरकार, अब सही समय आ गया है।
4 जून को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह ने सरकार बनाने के दावे को लेकर चुप्पी साध ली थी। उन्हें पता था कि उनका बयान एनडीए गठबंधन के लिए खतरा हो सकता है। वहीं, प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने शाह को आश्वस्त किया था कि फिलहाल सरकार बनने दो, बाकी सब कुछ अपने हिसाब से होगा।
शुरुआत में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू अमित शाह के खिलाफ थे। चंद्रबाबू ने तो मोदी से कह दिया था कि अमित शाह को कैबिनेट में नहीं होना चाहिए, जिसकी जानकारी शाह को भी थी। सरकार बनने के बाद, जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, तो अमित शाह को गृह मंत्रालय सौंपा गया। यह भी मोदी और शाह की रणनीति का हिस्सा था। मोदी जानते थे कि इन दोनों नेताओं से निपटने के लिए शाह ही सही व्यक्ति हैं।
अब स्थिति यह है कि जेडीयू और टीडीपी के नेता कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। अगर अमित शाह और नरेंद्र मोदी कुछ दिन और साथ रहते हैं, तो इनकी पार्टियों के सांसद दबाव में आकर बीजेपी में शामिल होने को मजबूर हो सकते हैं, जैसा कि पहले एनसीपी और शिवसेना के साथ हुआ था।
इस बात का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि चंद्रबाबू ने लोकसभा अध्यक्ष का पद मांगा था, लेकिन इतनी आसानी से इतना महत्वपूर्ण पद किसी को नहीं दिया जा सकता। राजनीति के चाणक्य अमित शाह और नरेंद्र मोदी, जो राज्यों में दूसरी पार्टी की सरकार गिराकर बीजेपी की सरकार बनाने में माहिर हैं, अपनी ही सरकार की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
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