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महाभियोग प्रक्रिया: संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के लिए अहम प्रावधान

भारत के संविधान में महाभियोग की प्रक्रिया उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को उनके पद से हटाने के लिए निर्मित की गई है। यह प्रक्रिया तब लागू होती है जब वे देशद्रोह, भ्रष्टाचार, कदाचार या पदानुकूल आचरण न करने के आरोपों के तहत दोषी पाए जाते हैं। इस अधिकार का उपयोग केवल संसद कर सकती है।

**संसद का ढांचा और कार्य**

संसद, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर एक निकाय बनाती है। यह देश की सर्वोच्च संस्था है, जो कानून बनाने, धन का प्रवाह नियंत्रित करने और शासन करने का कार्य करती है। संसद उपयुक्त लोगों को विधि अनुसार नियुक्त करती है और उन्हें निर्दिष्ट कार्य के अधिकार सौंपती है।

**संविधान द्वारा दिए गए उन्मुक्तियाँ**

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के जज, चुनाव आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) जैसे पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को संविधान कुछ उन्मुक्तियाँ (संरक्षण) प्रदान करता है, ताकि वे निर्भय होकर अपना काम कर सकें। लेकिन अगर ये पदाधिकारी अपने निर्दिष्ट काम नहीं करते या निर्दिष्ट दायरे से बाहर जाकर काम करते हैं, तो उन्हें पद से हटाने का अधिकार संसद को है।

**महाभियोग की प्रक्रिया**

कुछ मामलों में, जैसे जजों के लिए, 10% सांसद (55 सांसद) महाभियोग का नोटिस दे सकते हैं। अन्य मामलों में, जैसे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए, 25% सांसद (करीब 140 सांसद) नोटिस दे सकते हैं। यह नोटिस 14 दिन पहले सर्व होना चाहिए। इसके बाद नोटिस पर बहस होगी, और फिर वोटिंग होगी। अगर आवश्यक बहुमत (साधारण बहुमत या तीन चौथाई बहुमत) मिल जाता है, तो प्रस्ताव पारित माना जाएगा और व्यक्ति को उसी समय पद से हटाया जाएगा।

**विपक्ष की भूमिका और महाभियोग की जरूरत**

वर्तमान में विपक्ष मजबूत स्थिति में है और संख्याबल में सत्ता पक्ष से केवल थोड़ा पीछे है। हालांकि, विपक्ष का मुख्य उद्देश्य निष्पक्षता और कर्तव्य निर्वहन में असफल रहे संवैधानिक पदाधिकारियों को पदच्युत करना है।

विपक्ष को कुछ उदाहरण खड़े करने की जरूरत है, ताकि संवैधानिक पदों पर बैठे ताबेदार और रीढ़हीन व्यक्तियों को हटाया जा सके। यह भविष्य में पदाधिकारियों को पथभ्रष्ट होने से रोकने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

**चुनाव आयुक्त का मामला**

चुनाव आयुक्त एक अच्छा उदाहरण हो सकते हैं, क्योंकि उनके कार्यों में कई विवाद हैं, जैसे ईवीएम की पारदर्शिता, डेटा की सुरक्षा और आचार संहिता का पालन कराने में असफलता। विशेष रूप से महाराष्ट्र में पार्टियों की टूट पर कोर्ट की टिप्पणियाँ और चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन में स्वयं प्रधानमंत्री की भूमिका सवालों के घेरे में है।

**निष्कर्ष**

महाभियोग प्रक्रिया संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। अगर यह सफल नहीं भी होता, तो भी यह उदाहरण भविष्य में पथभ्रष्टता को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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