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ठेले पर आम बेचती डॉक्टर रईसा अंसारी: भारतीय संवैधानिक व्यवस्था का कड़वा सच

इंदौर । इंदौर की देवी अहल्या बाई यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में मास्टर और पीएचडी कर चुकीं डॉक्टर रईसा अंसारी ठेले पर आम बेचते हुए भारतीय संवैधानिक व्यवस्था का वह सच उजागर कर रही हैं जिसे सब जानते हैं, लेकिन कोई इस पर बात नहीं करना चाहता।

डॉक्टर रईसा अंसारी की कहानी:
– **उच्च शिक्षा**: डॉक्टर रईसा को बेल्जियम से रिसर्च करने का ऑफर मिला था, लेकिन उनके रिसर्च हेड ने उनके रिकमेंडेशन लेटर पर हस्ताक्षर नहीं किया।
– **थीसिस की समस्याएं**: थीसिस सबमिट होने के दो साल बाद तक उनका वाइवा नहीं किया गया, और प्रशासनिक दखल के बाद ही उनका वाइवा हो सका।
– **सीएसआईआर फेलोशिप**: रईसा ने कोलकाता के आईआईएसईआर से रिसर्च की है और उन्हें एक बार जूनियर रिसर्च के लिए अवार्ड भी मिला था।

घटनाओं की श्रृंखला:
– **गाइड की नाराजगी**: एक साक्षात्कार के दौरान रईसा ने अपने गाइड का नाम नहीं लिया, जिससे उनके गाइड नाराज हो गए।
– **नौकरी छोड़नी पड़ी**: एसोसिएट प्रोफेसर की नौकरी मिलने के बावजूद उन्हें परिस्थितियों के कारण यह नौकरी छोड़नी पड़ी। अब वह फल बेच रही हैं।

समाज का सोचने का समय:
रईसा की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि उनके गाइड और रिसर्च हेड कितने कुंठित होंगे जिन्होंने उनके रिकमेंडेशन लेटर पर हस्ताक्षर नहीं किए। यह घटना भारतीय शिक्षा प्रणाली की खामियों और व्यक्तिगत बदले की भावना को उजागर करती है।

रईसा अंसारी का संघर्ष और आत्मसम्मान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारा सिस्टम कितना कुंठित हो सकता है, जो एक प्रतिभाशाली और योग्य व्यक्ति को इस प्रकार की स्थिति में ला सकता है। डॉक्टर रईसा अंसारी की कहानी उन सभी को प्रेरित करती है जिन्होंने अपने सम्मान से समझौता नहीं किया।

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