
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बिहार विधानसभा द्वारा आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 65% करने के फैसले को रद्द कर दिया है। यह फैसला 21 नवंबर 2023 को पारित संविधान संशोधन के खिलाफ आया है।
संशोधन के तहत SC/ST/OBC/EBC को सरकारी नौकरियों में 50% से बढ़ाकर 65% आरक्षण दिया गया था, जिससे सामान्य श्रेणी के लिए सिर्फ 35% हिस्सा बचा था, जिसमें EWS के लिए 10% आरक्षण शामिल था।
**आरक्षण का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और विवाद:**
– देश में संविधान के निर्माण के समय दलित और आदिवासी वर्ग को सिर्फ 10 वर्ष के लिए 10% आरक्षण दिया गया था ताकि उन्हें समाज में बराबरी का अवसर मिल सके।
– समय के साथ आरक्षण राजनीति का साधन बन गया और विभिन्न राजनीतिक दलों ने जातियों को लुभाने के लिए इसे बढ़ाया।
– 7 अगस्त 1990 को बी.पी. सिंह सरकार ने OBC आरक्षण लागू किया, जिसे बीपी मंडल के 1979 के प्रस्ताव पर आधारित किया गया था।
**हालिया घटनाएं और प्रतिक्रियाएं:**
– न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 65% करने के निर्णय को संविधान के अनुरूप नहीं पाते हुए निरस्त कर दिया।
– सोशल मीडिया पर इस फैसले पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सोनू कुमार शांडिल्य ने एक्स हैंडल पर लिखा कि 65% आरक्षण के आधार पर हुई बहाली भी रद्द होनी चाहिए और नई सिरे से बहाली होनी चाहिए।
– एसएम योगी ने न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए याचिकाकर्ता और अधिवक्ताओं का आभार व्यक्त किया।
– मनोज जांगराई ने सोशल मीडिया पर आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत की, जबकि आदित्य कुमार त्रिवेदी ने मजाकिया लहजे में लिखा कि अब कोई “जिसकी जितनी आबादी, उसका उतना हक” नहीं कहेगा।
**समाज की प्रतिक्रिया:**
– राजस्थान के जयपुर में महिला आरक्षण बढ़ाने के विरोध और समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। भजनलाल शर्मा के समर्थन में नारे लगाए जा रहे हैं जबकि कई जगह इसका विरोध भी हो रहा है।
इस फैसले ने आरक्षण की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है और आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पर आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।