
दबंगई के चलते 8 पोलिंग का 3 घंटे रुका रहा था मतदान, प्रतिष्ठा बचाने साम, दाम ,दण्ड, भेद सभी का लिया सहारा
एक जाति को छोड़ सभी जातियों पर मतदान न करने बनाया था दबाव, वीडियो भी वायरल हुए
भोपाल । एमपी की दिमनी विधान सभा सीट पर दबंगई के चलते कुछ पोलिंगों पर मतदान मतदान नहीं करने दिया। जिसका वीडियो वायरल होने के बाद स्थानीय मीडिया और प्रशासन की सख्ती से मतदान शुरू करवाया गया । यह मतदान किसने रूकवाया यह सभी जानते हैं और क्यों रूकवाया गया इसका कारण सर्वविदित है। लेकिन निर्वाचन आयोग ने इस मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया जो कहीं न कहीं उनकी पारदर्शिता पर शंका दर्शाता है।
मुरैना जिले की दिमनी विधान सभा में इस बार कुछ अधिक ही धन बल जाति का असर अधिक दिखाई दिया । यह प्रदेश के सबसे प्रमुख विधानसभा क्षेत्र माना गया। यहां पर देश के बड़े से बड़े चैनल, प्रिंट मीडिया और यूट्यूब चैनल सहित सोशल मीडिया के पत्रकार भी पहुंचे । और उन्होंने वहां के मतदाताओं और पार्टी के कार्य कर्ताओं से भी चुनाव को लेकर चर्चा की । जिसमें साफ हो गया था कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीएसपी में होगा। लेकिन प्रधान मंत्री के पंचप्यालों में से एक जो दिमनी से प्रत्याशी के रूप में मैदान में है उनको यहां की जनता नकार रही है । उसके बाद इस विधान सभा में जोड़ तोड़ की राजनीति शुरू हुई और सामाजिक पंचायत और गुंडई, साम, दाम ,दण्ड, भेद सभी का सहारा भी लिया गया। जिसके एक नहीं दो से तीन वीडियो वायरल हुए थे। जिसमें जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। एक जाति को छोड़कर अन्य जातियों को मतदान करने से रोका जा रहा था। कई जगह पर मतदाताओं के घरों की कुंडी तक लगाने की जानकारी मिली थी।
8 मतदान केंद्रों पर 12 बजे तक रुका रहा मतदान
सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार दिमनी विधान सभा में तोमरों के द्वारा हरिजनों और ब्राह्मणों को मतदान करने से रोकने के लिए मारपीट, झगड़ा, गोली चलाने जैसी वारदातें भी भी कराई गई। इन्हें 8 मतदान केंद्र पर वोटिंग ही रुकवा दी गई थी। इन सभी मतदान केंद्रों पर अधिकतर हरिजन और ब्राह्मण मतदाता थे। इनके वोट न पड़े इसलिए यहां पर मतदाताओं को पहुंचने ही नहीं दिया गया था जिससे मतदान केंद्र बंद थे। जिसका वीडियो वायरल होने के बाद स्थानीय मीडिया और प्रशासन की सख्ती से मतदान शुरू करवाया गया । यह मतदान किसने रूकवाया यह सभी जानते हैं और क्यों रूकवाया गया इसका कारण सर्वविदित है। लेकिन निर्वाचन आयोग ने इस मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया जो कहीं न कहीं उनकी पारदर्शिता पर शंका दर्शाता है।