पुणे में शहरीकरण के कारण कार्बन अवशोषण में 34% की गिरावट – MIT वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी की स्टडी में खुलासा

नई दिल्ली, । भारत के तेज़ी से शहरीकरण की दौड़ में पर्यावरणीय संतुलन एक बड़ी चिंता का विषय बन चुका है। MIT वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी (MIT-WPU) की एक ताज़ा स्टडी में पुणे जैसे उभरते महानगर के लिए चेतावनी स्वरूप संकेत मिले हैं। शोध के अनुसार, बीते 10 वर्षों में शहर की कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की क्षमता में 34% की गिरावट दर्ज की गई है।
स्टडी का निष्कर्ष: विकास के साथ बढ़ा पर्यावरणीय संकट
डॉ. पंकज कोपार्डे और सस्टेना ग्रीन्स एलएलपी की प्रतीक्षा चालके द्वारा किए गए इस शोध में पाया गया कि 2013 से 2022 के बीच:
निर्माण क्षेत्रों में 12% की वृद्धि हुई।
हरे-भरे इलाकों में भारी कटौती, जिससे कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन क्षमता 34% तक घट गई।
प्राकृतिक जल निकासी मार्ग बाधित होने से बाढ़ से बचाव की क्षमता में 13% की कमी आई।
यह शोध “लूजिंग द कार्बन गेम? चेंजिंग फेस ऑफ ए ट्रॉपिकल स्मार्ट मेट्रो सिटी एंड इट्स रेपरकशंस” शीर्षक से Sustainable Futures Journal में प्रकाशित हुआ।
कारण: अव्यवस्थित शहरीकरण और हरित क्षेत्रों की हानि
तेज़ी से हो रहा निर्माण – खासकर नदी किनारे, पहाड़ियों, और वेटलैंड्स पर – शहर के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। यह न सिर्फ़ कार्बन अवशोषण क्षमता को कमजोर कर रहा है, बल्कि बाढ़ और गर्मी से निपटने की शहर की ताकत को भी घटा रहा है।
डॉ. कोपार्डे के अनुसार,
“शहरी पहाड़ियाँ और वेटलैंड्स जैविक रूप से ऐसे ‘इकोलॉजिकल स्पंज’ हैं, जिनकी क्षति भविष्य में शहरों के लिए आपदा बन सकती है।”
शहरी योजना में पारिस्थितिकी को मिलना चाहिए महत्व
शोधकर्ता सुझाव देते हैं कि:
इकोसिस्टम सर्विस वैल्यूएशन मॉडल (ESV) का उपयोग करके हर क्षेत्र की पारिस्थितिकी मूल्य तय किया जाए।
इंटीग्रेटेड अर्बन प्लानिंग फ्रेमवर्क अपनाया जाए जिसमें विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन हो।
हेरिटेज नेचुरल ज़ोन, जैसे पहाड़ियाँ, वेटलैंड्स और नदियों के किनारे सुरक्षित रखे जाएं।
MIT-WPU का रुख: शोध से नीति निर्माण की दिशा
डॉ. आर. एम. चिटनिस, वाइस चांसलर, MIT-WPU ने कहा:
“हम मानते हैं कि यदि भारत को पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ विकास पथ पर आगे बढ़ना है, तो वैज्ञानिक शोध को नीति निर्माण की नींव बनाना होगा।”
पुणे की सीख – सभी उभरते शहरों के लिए चेतावनी
भारत ही नहीं, पूरे ग्लोबल साउथ के लिए यह स्टडी एक सावधानी की घंटी है:
तापमान में बढ़ोतरी
अनियमित मानसून
बार-बार आने वाली बाढ़
इनके साथ शहरीकरण अगर संतुलन और सतर्कता के बिना होता है, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
निष्कर्ष: समय रहते उठाए जाने चाहिए ठोस कदम
यह स्टडी बताती है कि ग्रीन स्पेस की हिफाज़त, जल निकासी प्रबंधन और स्मार्ट प्लानिंग के ज़रिए ही शहरी जीवन को दीर्घकालिक और सुरक्षित बनाया जा सकता है। पुणे की यह रिपोर्ट उन सभी शहरों के लिए गाइडलाइन बन सकती है जो विकास और सस्टेनेबिलिटी के बीच संतुलन चाहते हैं।





