भंवर कांग्रेस में, फॅस गई भाजपा
political news Bhopal Kailash Vijayvargiya’s political mentor is from Congress : आखिर भाजपा सत्ता और संगठन ने मिलकर ऐसा क्या किया कि, जो पार्टी के पुराने दिग्गज एवं खांटी नेता एक के बाद एक पार्टी को अलविदा कहते जा रहे हैं। भाजपाई राजनीति के संत एवं पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के सुपुत्र पूर्व मंत्री दीपक जोशी से भाजपा को अलविदा कहने का शुरू हुआ सिलसिला भंवरसिंह शेखावत तक आ पहुंचा है। शेखावत कल कांग्रेस के हो गए। सिलसिला अभी थमा नहीं है। भाजपा के दिग्गज नेता सत्यनारायण सत्तन के पास भी कांग्रेस से प्रस्ताव आया है। बताते हैं कि, उन्हें कमलनाथ की ओर से भाजपा की अयोध्या कहीं जाने वाली इंदौर की विधानसभा क्रमांक- चार से टिकट का आफर दिया गया है। हालांकि, सत्यनारायण सत्तन ने कांग्रेस के प्रस्ताव को ये कहकर ठुकरा दिया है कि फिलहाल उनकी चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है।
भाजपाई राजनीति के संत एवं पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के सुपुत्र दीपक जोशी के बाद अब भाजपा के दिग्गज नेता भंवर सिंह शेखावत कांग्रेस परिवार का हिस्सा हो गए हैं। शेखावत भाजपा में तीखे एवं बेबाक राजनीतिक तेवरों के लिए जाने जाते थे। भाजपा सत्ता-संगठन ने जरूर कोई ऐसे गहरे जख्म दिए हैं, जिसकी वजह से उन्हें भाजपा से किनारा करना पड़ा है। वो भी ऐसे समय में जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा का बोलबाला है। शेखावत ने सदैव तेवरों की राजनीति की। वे इन्दौर के ही नहीं, मालवा अंचल के उन पुराने नेताओं में शुमार रहे हैं, जिनके जरिए पहले पार्टी ने जनसंघ का सफर तय किया और उसके बाद भाजपा को ताकत देने के साथ उसे मालवा अंचल में स्थापित किया। विधानसभा क्रमांक पांच से शेखावत विधायक रह चुके हैं। बाद में उन्होंने इंदौर से सटे धार जिले के विधानसभा क्षेत्र बदनावर को अपनी राजनीति की कर्मभूमि बना लिया। शेखावत वहां से भी विधायक रहे और इस बार भी बदनावर से ही टिकट मांग रहे थे। भाजपा उन्हें आश्वस्त नहीं कर सकी, नतीज़े में शेखावत ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस भरोसे के साथ कि उन्हें बदनावर से कांग्रेस लड़ाएगी।
शेखावत सदैव अपने अलग अंदाज और अलग राजनैतिक कार्यशैली के लिए भाजपा में पहचाने जाते थे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजवर्गीय जैसे नेता भी उन्हीं की देन हैं। शेखावत कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक गुरू हैं। शेखावत की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा विपक्ष में रहते बीता है । लेकिन उनके तेवरों की वजह से पार्टी ने विपक्ष में रहकर भी तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस में हमेशा धमक और दबदबा बनाए रखा। शेखावत की प्रशासनिक क्षमता इतनी गजब रही कि, उन्होंने कभी किसी अफ़सर को शहर में हावी नहीं होने दिया। आज की जो भाजपा अफसरों के सामने नतमस्तक दिखाई देती है, कहते हैं कि, शेखावत का दौर इससे ठीक उलट था। अफसरशाही के खिलाफ आज जो तेवर कैलाश विजवर्गीय के रहते हैं, उनमें साफतौर पर शेखावत के तेवरों का अक्स देखा जा सकता है। शेखावत जैसे नेता के भाजपा को अलविदा कहने से पार्टी में उनके समकालीन नेता और कार्यकर्ता आहत और उदास हैं। वे कहते हैं कि सोचा न था कि, ये दिन भी देखना पड़ेंगे।