भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी भी होगा बंद

 सात साल में पांच विभाग हो चुके हैं बंद

गैस पीड़ितों को इलाज के लिए भटकना पड़ेगा
भोपाल । भोपाल मेमोरियल हॉस्पटिल एंड रिसर्च सेंटर यानी बीएमएचआरसी के सात साल में पांच विभाग बंद हो चुके हैं। अब कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट भी बंद होने की स्थिति में पहुंच गया है। 
भोपाल मेमोरियल हॉस्टिपल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) के डॉक्टर लगातार नौकरी छोड़ रहे हैं। अब कार्डियोलॉजी विभाग के दो कंसल्टेंट डॉ. आशीष और डॉ. आयुष जैन ने इस्तीफे दिए हैं। दोनों नोटिस पीरियड पर है। इनके जाने के बाद कार्डियोलॉजी विभाग बंद ही हो जाएगा। 
इससे पहले कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टर संजय गुप्ता छोड़कर चले गए थे। अस्पताल में बीते सात साल में पांच विभाग बंद हो चुके हैं। डॉक्टरों के जाने के बाद उनका रीप्लेसमेंट नहीं मिलता और इस तरह विभाग हमेशा के लिए बंद हो जाता है। 
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने कहा कि जनरल मेडिसिन, ऑर्थोपेडिक्स, गायनेकोलॉजी और पीडियाट्रिक्स विभाग अस्पताल में शुरू ही नहीं हो सके हैं। जो चल रहे थे, वह भी अब धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। इमरजेंसी में अस्पताल जाने वाले अधिकांश मरीजों को कैजुअल्टी से ही हमीदिया या एम्स जाने को बोल दिया जाता है। कहा जाता है कि यहां डॉक्टर नहीं है।  

यह विभाग बंद हो गए 
अस्पताल में कैंसर, नेफ्रोलॉजी, न्यूरोलॉजी, गैस्ट्रो-मेडिसिन, सीटीवीएस बंद हो चुके हैं। अब कार्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों के इस्तीफे के कारण वह भी बंद होने के कगार पर है। 
दस की भर्ती, तीन ने किया ज्वाइन 
प्रशासन ने अलग-अलग विभागों के लिए दस असिस्टेंट डॉक्टरों की भर्ती की थी। इनमें से सिर्फ तीन ने ही ज्वाइन किया है। अस्पताल में डॉक्टरों के ज्वाइन नहीं करने का कारण कम वेतन और भर्ती नियमों की विसंगति बताई जा रही है। अच्छा वेतन मिलने पर डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जा रहे हैं। नए आ नहीं रहे।   

2020 में 14 डॉक्टरों ने दिए थे इस्तीफे
अस्पताल में 2020 में एक साथ 14 डॉक्टरों ने इस्तीफे दिए थे। यहां कंसल्टेंट के 40 पद हैं, लेकिन अब 20 कंसल्टेंट भी नहीं बचे हैं। 

गैस पीड़ितों के इलाज पर पड़ेगा असर 
सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग कमेटी के सदस्य पूर्णेंदु शुक्ल का कहना है कि भोपाल मेमोरियल को लेकर सरकार का नजरिया ठीक नहीं है। डॉक्टर नौकरी छोड़े जा रहे हैं। इसका असर गैस पीड़ितों के इलाज पर पड़ रहा है। 

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