युवाओं तक ज्ञान परंपरा अतीत नहीं, आगत के रूप में पहुंचाना होगा
भोपाल। भारतीय ज्ञान परंपरा शाश्वत है। यदि हम ज्ञान परंपरा की बात करते हैं तो पहले हमें यह उस परंपरा के स्त्रोत पर भी चर्चा करना होगी। यदि हमें भारतीय ज्ञान परंपरा युवाओं तक पहुंचाना है तो हमें ‘परंपरा’ को अतीत के रूप में नहीं आगत के रूप में पहुंचाना होगा। वरिष्ठ पीढ़ी को युवाओं के बीच जाना चाहिए।
इस तरह के विचार आज हिंदी भवन में सुनाई दिये। अवसर था मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रतिष्ठित आयोजन ‘शरद व्याख्यानमाला’ का। कार्यक्रम में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा :युवा पीढ़ी और संप्रेषण की समस्या’ विषय दो सत्रों में विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए। दूसरे सत्र में व्याख्यान के साथ ही समिति द्वारा दिए जाने वाले विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों से दर्जन भर से ज्यादा विभूतियों को सम्मानित भी किया गया।
पहले सत्र में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और साहित्यिक पत्रिका ‘अक्षरा’ के संपादक मनोज श्रीवास्तव की अध्यक्षता में प्रो. संजय द्विवेदी,मनोज श्रीवास्तव, डॉ. चारूदत्त पिंगले के वक्तव्य हुए। सत्र में प्रो.द्विवेदी ने कहा कि युवाओं के जीवन में नई तकनीक और सोशल मीडिया का हस्तक्षेप बढ़ा है। यह जरूरी भी है, इस वजह से वरिष्ठ पीढ़ी चाहकर भी उसे दूर नहीं कर पा रही। लेकिन ज्ञान के इस नवीन स्त्रोत से युवा क्या प्राप्त कर रहा है इस पर निगरानी तो जरूरी है। वरिष्ठ विचारक और चिकित्सक डॉ. चारूदत्त पिंगले ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा शाश्वत सूर्य की तरह है, इस पर भले ही ग्रहण लग जाये लेकिन यह ढल नहीं सकती। लेकिन हमें उस परंपरा के स्त्रोतों को भी समझना ही होगा। सत्र की अध्यक्षता कर रहे मनोज श्रीवास्तव ने युवाओं से हुई चर्चाओं के निष्कर्ष बताते हुए कहा कि युवाओं के सामने परंपरा को इस तरह से प्रस्तुत करना होगा कि उसके मन में बनी जड़ता की छवि टूट कर नए परिप्रेक्ष्य में आये, तब वह उससे जुड़ेगा। इसके पूर्व विषय विश्लेषण करते हुए प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा का प्रमुख अंग संवाद है, इसे प्राथमिकता देनी होगी। इसे शिक्षा के साथ भी जोडऩा होगा। दूसरे सत्र में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि इस आयोजन का समाचार मुझे इंस्ट्राग्राम पर एक युवा से ही मिला । इसका अर्थ यह है कि युवा सजग तो है। उनका कहना थ कि हमें युवाओं को इस परंपरा से जोडऩा है तो हमें उसके पास तक पहुंचने में गुरेज नहीं करना चाहिए। उनका सुझाव था कि ऐसे आयोजन शैक्षणिक संस्थाओं में होने चाहिए। विषय पर चंडीगढ़ से प्रो.सुधीर कुमार ने ऑनलाइन वक्तव्य दिया। डॉ. प्रभुदयाल मिश्र ने भी अपने विचार रखे। समिति की ओर से अध्यक्ष सुखदेव प्रसाद दुबे तथा उपाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा ने भी विचार रखे। संचालन जया केतकी ने किया।
बॉक्स- इनका हुआ सम्मान
कार्यक्रम में समिति की ओर से नरेश मेहता स्मृति वांग्मय सम्मान से अग्निशेखर,वीरेन्द्र तिवारी रचनात्मक सम्मान से कुसुमलता केडिया, शैलेश मटियानी स्मृति चित्राकुमार कथा सम्मान प्रभा पारीक, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय स्मृति आलोचना पुरस्कार आनंद कुमार सिंह तथा डॉ. सुरेश शुक्ल चंद्र पुरस्कार रीता वर्मा, शंकरशरण लाल बत्ता पौराणिक आख्यायिका पुरस्कार अमिता नीरव तथा संतोष बत्ता स्मृति पुरस्कार सुषमा मुनीन्द्र को प्रदान किये गये। सम्मानितों की ओर से अग्निशेखर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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