केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि इसके साथ ही आठ लिंकों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी पूरी कर ली गई है। देश में जल उपलब्धता एक समान नहीं होने के कारण कुछ भागों में बार बार बाढ़ आती है तथा अन्य कुछ भागों में सूखा पड़ता है।
जल की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के लिये नदियों को जोड़ने की परिकल्पना की गई है। नदी लिंक परियोजनाओं का कार्यान्वयन संबंधित राज्यों की सहमति पर निर्भर करता है। इस प्रकार संबंधित राज्यों के बीच आम सहमति और समझौते के सिद्धांत के आधार पर नदियों को जोड़ने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जल बंटवारे पर पार्टी राज्यों के बीच समझौता हो जाने के बाद एक इंटरलिंकिंग परियोजना कार्यान्वयन चरण तक पहुंच जाएगी। इसके बाद कार्यान्वयन के लिए सभी आवश्यक वैधानिक मंजूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने एनडब्ल्यूडीए से शारदा नदी को गोमती नदी से जोड़ने का अध्ययन करने का अनुरोध किया है। इसके अंतर्गत अन्तर्राजीय लिंक की ड्राफ्ट प्री-फीजिबिलिटी रिपोर्ट को पूरा कर लिया गया है और अक्टूबर, 2021 में राज्य सरकार को प्रस्तुत कर दिया गया है।
केन-बेतवा नदी लिंक को मंजूरी
भारत सरकार ने 39,317 करोड़ रूपये की केंद्रीय सहायता के साथ 44,605 करोड़ रूपये की अनुमानित लागत वाली केन बेतवा परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी प्रदान कर दी है। 1 फरवरी को आम बजट 2022-23 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केन बेतवा प्रोजेक्ट के लिए 1400 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है और इसके बाद 5 और नदियों को भी जोड़ा जाएगा।
इस परियोजना में केन नदी से बेतवा नदी में जल स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है, ये दोनों ही यमुना की सहायक नदियाँ हैं। यह परियोजना आठ वर्षों में पूरी होगी। यह नदियों को आपस में जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत पहली परियोजना है। केन-बेतवा लिंक नहर 221 किमी. लंबी होगी, जिसमें 2 किमी. लंबी सुरंग भी शामिल है। परियोजना को लागू करने के लिये केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (KBLPA) नामक एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) की स्थापना की गई है। अलग-अलग लिंक परियोजनाओं के लिये SPV स्थापित करने की शक्तियाँ राष्ट्रीय नदी अन्तराबंधन प्राधिकरण (National Interlinking of Rivers Authority- NIRA) में निहित हैं।
इस परियोजना के दो चरण हैं, जिसमें मुख्य रूप से चार घटक शामिल हैं।
चरण- I में एक घटक शामिल होगा- दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयाँ जिसमें निम्न स्तरीय सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजली घर शामिल हैं।
चरण- II में तीन घटक शामिल होंगे- ‘लोअर और बाँध’, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
यह परियोजना बुंदेलखंड में है, जो एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है तथा इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से जल की कमी वाले इस क्षेत्र को अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा। इसके अलावा, यह नदी परियोजनाओं को जोड़ने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल की कमी देश के विकास में अवरोधक न बने। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।
पूरे देश में पूर्ण जलापूर्ति सहित विकास में महत्वपूर्ण साबित होगी नदी जोड़ो परियोजना
भारत मानसून की वर्षा पर निर्भर है जो अनियमित होने के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर असंतुलित भी है। नदियों को आपस में जोड़ने से अतिरिक्त वर्षा और समुद्र में नदी के जल प्रवाह की मात्रा में कमी आएगी। वहीं इंटरलिंकिंग द्वारा अतिरिक्त जल को न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करके न्यून वर्षा आधारित भारतीय कृषि क्षेत्रों में सिंचाई संबंधित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस परियोजना के पूर्ण होने से सूखे और बाढ़ के प्रभाव को बड़े स्तर पर कम करने में मदद मिलेगी। इससे अतिरिक्त जल-विद्युत उत्पादन, वर्ष भर नौवहन, रोजगार सृजन जैसे लाभों के साथ ही सूखे जंगल और भूमि क्षेत्रों में पारिस्थितिक गिरावट की भरपाई की जा सकेगी।
नदियों को जोड़ने के तहत अगर ज्यादा पानी वाली नदियों को कम पानी वाली नदियों से जोड़ा जाता है तो न सिर्फ बाढ़ और सूखे का स्थायी समाधान होगा बल्कि बिजली उत्पादन में भी भारी बढ़ोतरी होगी। इसके अतिरिक्त नौ करोड़ एकड़ में सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा भी मिलेगी। देश में 69 हजार मिलियन घनफुट पानी उपलब्ध है। इसमें से हम मात्र तेरह प्रतिशत जल का ही उपयोग कर पाते हैं। बाकी 87% पानी समुद्र में चला जाता है। एक हजार मिलियन घन फुट पानी का अगर सिंचाई के लिए उपयोग किया जाए तो उससे हर साल करोड़ों की फसल पैदा होगी। नदी जोड़ों से हम 25 करोड़ हैक्टेयर में खाद्यान्न का जो उत्पादन कर पाएंगे उसका मूल्य 20 लाख करोड़ प्रतिवर्ष होगा। साथ ही इससे स्वच्छ पानी की समस्या से निजात मिलेगी और पानी का स्तर बढ़ाने में भी मदद मिलेगी साथ नहरों के विकास से एकतरफ नौवहन का विकास होगा साथ ही सिंचाई रकबे में खुद-बखुद वृद्धि होगी जिससे कृषि के उत्पादन में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। लाखों कृषक परिवारों के जीवन में इससे सुधार होगा और उनको बदहाली से निजात मिलेगी। इस परियोजना से बड़े पैमाने पर वनीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे पर्यावरण स्वच्छता की तरफ भी कदम बढ़ेंगे। साथ ही ग्रामीण जगत के भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिये रोजगार के तमाम अवसर पैदा होंगे, जो आर्थिक विकास को एक नई दिशा प्रदान करेगी।
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