नई दिल्ली । आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के बाद भारत अलग-अलग क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने में लगा है। अलग-अलग क्षेत्रों में बढ़ते निर्यात आत्मनिर्भरता की तस्दीक करते हैं। देशवासी अपने इनोवेशन से उन चीजों को भी संभव बना रहे हैं, जिसकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। हाल के वर्षों में हमारे देश ने उपलब्धियों का एक लम्बा सफर तय किया है। ऐसे में पीएम मोदी कहते हैं कि उन्हें विश्वास है कि भारतीय और विशेषकर हमारी युवा-पीढ़ी अब रुकने वाली नहीं है।
म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का निर्यात 60 गुना बढ़ा
दरअसल, बीते 8 वर्षों में भारत से म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का निर्यात साढ़े तीन गुना बढ़ गया है। इलेक्ट्रिकल म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की बात करें तो इनका निर्यात 60 गुना बढ़ा है। मौजूदा वित्त वर्ष के अप्रैल-सितंबर के दौरान बढ़कर 172 करोड़ रुपये हो गया। जबकि यह 2013-14 की समान अवधि में 49 करोड़ रुपये था।
खरीदार सबसे बड़े देश
वैसे तो भारतीय म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट 173 से अधिक देशों में निर्यात किए जाते हैं। लेकिन सबसे बड़े खरीदार अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, जापान और यूके जैसे विकसित देश हैं। हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में संगी, डांस और कला की इतनी समृद्ध विरासत है। इससे पता चलता है कि भारतीय संस्कृति और संगीत का क्रेज दुनियाभर में बढ़ रहा है।
सबसे ज्यादा निर्यात वाले वाद्य यंत्र
डमरू, तबला, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा जैसे कई वाद्य यंत्रों का निर्यात हो रहा है। पीएम मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा कि वेदों में सामवेद को तो हमारे विविध संगीतों का स्त्रोत कहा गया है। मां सरस्वती की वीणा हो, भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी हो, या फिर भोलेनाथ का डमरू, हमारे देवी-देवता भी संगीत से अलग नहीं है। हम भारतीय, हर चीज में संगीत तलाश ही लेते हैं। चाहे वह नदी की कलकल हो, बारिश की बूंदें हों, पक्षियों का कलरव हो या फिर हवा का गूंजता स्वर, हमारी सभ्यता में संगीत हर तरफ समाया हुआ है। यह संगीत न सिर्फ शरीर को सुकून देता है, बल्कि, मन को भी आनंदित करता है। संगीत हमारे समाज को भी जोड़ता है। यदि भांगड़ा और लावणी में जोश और आनन्द का भाव है, तो रविन्द्र संगीत, हमारी आत्मा को आह्लादित कर देता है। देशभर के आदिवासियों की अलग-अलग तरह की संगीत परम्पराएं हैं। ये हमें आपस में मिलजुल कर और प्रकृति के साथ रहने की प्रेरणा देती है।
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